چهارشنبه ۲۸ آبان
شعر چهار پاره
|
|
|
|
کسی آمد در این آشفتگی های فراوان
|
|
|
|
|
|
|
|
|
برشانه هایت آیتی از ردّ باران نیست
|
|
|
|
|
|
|
|
|
جای لباس خواب رنگی ام
تنهایی خود را به تن پوشم
|
|
|
|
|
|
|
|
|
کس ندیدم که مرا درک کند
هیچکس با دل من یار نشد
هر که شد همره من در زندگی
در میان آستین چون مار
|
|
|
|
|
|
|
|
|
همچو مرغی در تمنایِ عُروج
غوطه ور شد زندِگانی در خیال
|
|
|
|
|
|
|
|
|
در دلم شعله می کشد دیری است
آ تش خا طرات رفته و د و ر
می کشد شعله ، می کشد آری
تا رسا ند مر
|
|
|
|
|
|
|
|
|
این دختر عاشق فراموشی بلد نیست
|
|
|
|
|
|
|
|
|
برایـــم چاله پر آب اسن تنها
که آنهم چشمه یا دریا نگردد
وجودم تنگ ومیل ازگریه دارد
بسی بگرفته حال
|
|
|
|
|
|
|
|
|
خبر از مرگِ شعرِ من داری؟
|
|
|
|
|
|
|
|
|
یک من درون شعر من باقی
یک من شبیه حضرت باران
شورآفرینِ خسته از تیشه
با کِروها و خط کش و
|
|
|
|
|
|
|
|
|
گِرد مغزی بس است ... شاید هم
این جهــان را رها نکرد ایزد !!!
|
|
|
|
|
|
|
|
|
ناگه از بین این همه آبی
پَری قصّه گو رَهید و جَهید
|
|
|
|
|
|
|
|
|
بخند و به این لحظه چشمک بزن
|
|
|
|
|
|
|
|
|
کم مانده دلم پای دل سنگ تو افتد
|
|
|
|
|
|
|
|
|
می آیی از راه و در این تاریکی
روی تو ماه آسمان دل شد..
|
|
|
|
|
|
|
|
|
زیر درختان حسود پارک...
چشمان تو بوی نفس میداد
|
|
|
|
|
|
|
|
|
گفتم به هزارویک دلیل است که تورامی خواهم...
|
|
|
|
|
|
|
|
|
من آن کوهم که یخ بسته
درونِ دشتِ آغوشت
من آن شمعم که می میرد
که روشن تر کُند رویت
|
|
|
|
|
|
|
|
|
خوابی عمیق از بازیِ یک عمر تعبیرم
|
|
|
|
|
|
|
|
|
تو را میخواهم ای مرهمترین عاشق/
تو را میخواهم ای عاشقترین مرهم/
تو را من با تمام زخمهای خود/
|
|
|
|
|
|
|
|
|
دیگه دارم یاد می گیرم
چی بشنوم چی ببینم
از خیلی حرفا رد می شم
خیلیا رو نمی بینم
|
|
|
|
|
|
|
|
|
درود و عرض ادب
امشب تمام واژه ها تلخند
مانند طعم قهوه ی قاجار
حزن از در و دیوار می بارد
غصه نش
|
|
|
|
|
|
|
|
|
موج می زد در نگاهش مهربانی ها ولی
در وجودش زخم هایی از زبان بسیار بود
ظاهری لبریز از لبخند های
|
|
|
|
|
|
|
|
|
می نشینم چو می رسم از راه
می زنم خسته تکیه بر دیوار
|
|
|
|
|
|
|
|
|
پائیز میرود که تو را در تو حل کند
با خشخشی که در سر من درد میشود
سرشاخهی شکستهی بیبگ و بار ش
|
|
|
|
|
|
|
|
|
من در نفسهای تو میسوزم . . .
اتمسفر عشقی، هوا عالیست
|
|
|
|
|
|
|
|
|
بادها هم ترانه می خواندند
شرح این لحظه ها شنیدن داشت
|
|
|
|
|
|
|
|
|
من شب قدرِ واژههای رمیده
تو خطِ ممتدِ روضههایی
این جهان از جنون من پر شد
تو رسول تمام فتنههایی
|
|
|
|
|
|
|
|
|
دو مرواریدِ دیده خونفشان است
به راهت بس که بارید ابرِ گریان
|
|
|
|
|
|
|
|
|
امشب به قلب کافه ستیزم گسل زدم . . .
تا شعر دود خورده سیگار ها شوم
|
|
|
|
|
|
|
|
|
تمامش کن خیالت را
من این احساس را کشتم
|
|
|
|
|
|
|
|
|
حالا که دلی هست، دگر حوصله ای نیست
گر چشم تری هست، دگر حنجره ای نیست
این باد که یادآور ایام قدیم ا
|
|
|
|
|
|
|
|
|
وقتی خدا به روی بشر سایه میکشید
تاریخ انقضای خودش را مگر ندید؟
|
|
|
|
|
|
|
|
|
در کفش سربازان رز قرمز بکاریم.
|
|
|
|
|
|
|
|
|
یک سند شاعرانه از بخشی از تاریخ کرمانشاه. هم درد داره، هم زیبایی، هم حقیقت.
|
|
|
|
|
|
|
|
|
روی مرز شجاعت و پروا
بین ایمان و لحظهی انکار
|
|
|
|
|
|
|
|
|
میخواهمت ای مهر/
میخواهمت ای ماه/
دیدم طلوعت را/
در لحظهای دلخواه
...
|
|
|
|
|
|
|
|
|
در حوالی ما ادعا ممنوع
.
.
.
|
|
|
|
|
|
|
|
|
یک روز آید آسمان شهر من باز
|
|
|
|
|
|
|
|
|
شاعری خواست تا که بنویسد
از غریبی غزه در شعرش
|
|
|
|
|
|
|
|
|
تا بوده همین بوده و تاریخ
از اهل قلم ، قلم شکسته
|
|
|
|
|
|
|
|
|
^......ادا و اصول......^
دل که دادم، دل بریدن کارِ اول شد برات
مهربونی هام شدن جرم، مثل یک امضای
|
|
|
|
|
|
|
|
|
شعر از کیمیا ساعیان
*ای مادر دریایی، نامی پر از زیبایی
ای قدرت ایرانی، تاج خلیج مایی
*ای مادر
|
|
|
|
|
|
|
|
|
تلخ کامی میکنی با من ولی این را بدان
قند پنهان لبت را عاقبت کِش میروم
ترشرویی میکنی با من، ولی فر
|
|
|
|
|
|
|
|
|
چاره ازتو نیست ممکن، آسمانی بر سرِ من
دوری از تو شاید اما؛ هر کجا باشم زمینم...
|
|
|
|
|
|
|
|
|
از قرصها بگو، از خاطراتِ خوب
از ورزش و سفر... بعدش کمی بخواب
|
|
|
|
|
|
|
|
|
صیاد و برّه آهو
برّه آهویی، راه گم کرده بود
از پدر مادر، نگاه گم کرده بود
پرسه می زد در کنار نهر
|
|
|
|
|
|
|
|
|
چون بپرسند اسم رمزش چیست
تو بگو نام اوست پاناتی
|
|
|
|
|
|
|
|
|
ناگهان رازی زِ چشمی شعله زد
بیسخن بر عمقِ جانم پنجه زد
|
|
|
|
|
|
|
|
|
آهای آدمها
لطفا اشک عروسکها را
درنیاورید!
|
|
|
|
|
|
|
|
|
نرو هم قسم با دلِ زخمی ام
|
|
|
|
|
|
|
|
|
مهرت ایران در تمامی جهان پیچیده است
|
|
|
|
|
|
|
|
|
یک اشتیاق تازه و پرشور میبالد/
بر ریشهی عشقی شکوفا در درون من/
بر هر رگم هر ساقهی این عشق میپی
|
|
|
|
|
|
|
|
|
سلام بر تو ای شهید بامداد
|
|
|
|
|
|
|
|
|
شب بخیر ای بغض های پیر مانده در گلو
|
|
|
|
|
|
|
|
|
آب حیات زندگی من شد
آه ای غریب آشنا لبخندت
|
|
|
|
|
|
|
|
|
ای داغ از این سینهٔ زخمی چه میخواهی
|
|
|
|
|
|
|
|
|
عشق یعنی که بمانی وسطِ خون خودت
سر به لبخند ببازی، به جنونِ خودت
|
|
|
|
|
|
|
|
|
صدای های و هوی گردبادی تند می آید
که می خواهد از این عالم بگیرد روح انسان را
فراوان می خورد بر
|
|
|
|
|
|
|
|
|
در بند این خرابهی متروکه
|
|
|
|
|
|
|
|
|
عمری که طی کردم اگر شیرین اگر تلخ
|
|
|
|
|
|
|
|
|
نغمه خوان شد قلمم گفت خدا هست به رگ
|
|
|
|
|
|
|
|
|
موهای پریشان به کمر افتاده
آتش ز شرارت به جگر افتاده
|
|
|
|
|
|
|
|
|
خبر اومد تو بندر خنجری تیز
|
|
|
|
|
|
|
|
|
تو همچون بوی بارانی که میریزد به صحرایی
چو خاکی تشنه من بودم بدون هیچ فردایی
|
|
|
|
|
|
|
|
|
گر آن اسلام باشد دین و قرآن
چرا مرشد بسازد دارو زندان
|
|
|
|
|
|
|
|
|
رویِ نطفه های هر بیتَم
غولی از هراس زاییدند
|
|
|
|
|
| مجموع ۲۴۸۷ پست فعال در ۳۲ صفحه |