پنجشنبه ۲ ارديبهشت
اشعار دفتر شعرِ نجوای دلسوز شاعر مهدی بدری ماشمیانی(دلسوز)
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دیشب از بیماریِ بی التهابم بی خبر بودی عزیز!
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میروی آخر ز رویِ چشم گریانم چرا؟!
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ای ماهِ تابان یک زمان بر قلبِ خاموشم بِتاب!
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شب به دامانِ سکوتم نیمه شب آهی کشید!
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من میرَوَم از شهرِ تو با کوله بارِ آرزو!
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شَرحِه شَرحِه روزِ هجران سینه ام خوناب شد!
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در به در رفتم به سویِ کوچه یِ تنهایی ام!
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در کویرِ بی بهار از بویِ گل یادی کنیم!
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آسِمان یِکباره لرزید از جَفایت ای بُتِ سیمین قبا!
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گفته بودی گر بیایی قلبِ من پَر می کشد!
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آمدی در خوابِ من اندر شبی با شِکوه های بیکران!
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می روم سویِ دیارِ بی کَسی آزرده و تنها چرا؟!
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نشان بده مرا به من نشانه تا نشانه ها!
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مِه گرفته غربتم را در غروبی غَمگُسار!
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بر چهره ی خود چند نظر کردم و در آیِنِه بودم!
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اینگونه رفتن مهربان از کویِ دل آخر ز چیست؟!
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وقتی که می آیید مهربان بیائید!
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خیزید و بهاران شد، صد غنچه به بار آمد!
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تا که برگشتی به سویم کویِ دل سامان گرفت!
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شادِمانی از چه ای دل، فصلِ باران شد مگر؟!
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اجل آن سوی عصیانش، به رویم نغمه ای سر داد!
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وقتی بهاران می رسد باغم گلستان می شود!
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برخیز و دلا پر زن،هنگام بهار آمد!
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دامن مکشان از من،برگرد و صدایم کن!
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