شنبه ۴ اسفند
اشعار دفتر شعرِ غزل شاعر سکینه تاجمیری (نوا)
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مگر آغوش پر مهرت تداعی می شود با خاک
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علامه ی دهری اگر بی عشق، ناچیزی
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پناه خستگی هام نیست غیر از دست تو دستی
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چه کوهی به چشم آمد و حسرتا که / همانند کاهی نسیمش ببُردست
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هر آسان لزوما خوشایند نیست
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بگو شانه ات را هراسان مشو
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به من افزود اندوه و مرا از خویش منها کرد
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به راهت چشم مغمومم شبیه پنجره وا ماند
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ولی ساده جهانم را دچار انزوا کردی
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دل من خسته است از این خیانتهای تکراری
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چه نومیدانه دل کندن از او را میکنم تمرین
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من بدهکارم به بغضم شانه ات را هر نفس
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آنکه در اقلیم قلبم خانه ای می ساخت رفت
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خسته ام چون کودکی که مادرش
دوست دارد آن یکی فرزند را
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آفتابا فکر خشکانیدنم را هم نکن
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به منظور اقامت در دل تو حتی من از خودم هم کوچ کردم
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سیب چیدن از نگاهت گر گناهی هی بود، باشد
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نوا شرمنده ی این است که بعد از تو نفس دارد
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بال پرستوانه ی قلب نوا را چیده ای
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عاطفه وقتی میان قلبها فارق نبود
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اینجا ز قلب آدما عاطفه ریشه کن شده
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دل با شکیبایی طریق التیامش را گرفت
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ز تو تا آرزومندی ولی راه درازی بود
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فرصتی دیگر عطا کن ای تو معمار دلم
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هر کجا باشی دلم سویت شتابان می شود
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شبان هر دلی گشتم ز روحم ساده غافل شد
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همین بس که تو میدانی که من در عشق استادم
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به هرتاری زدم زخمه، " نوای " غم نوازیده
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باز اقلیم نگاهم خالی از دلبستگی هاست
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مادر ای انگیزه ی این عشق جاودان من
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بگو که چش به راهتم همیشه هر شب و سحر
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با خیالت اون قطار نا امیدی واژگون شد
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بال وپرم را سوختست این عشق نافرجام تو
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گر به فراموشی ،مرا یاد تو نسپرده گلم
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دست دلم رو گشته بهر چشم ناز تو عزیز
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ندیدی التماسم را دراین حالی که مغرورم؟
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ای غریبه که دل من جز به مهرت آشنا نیست
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گفت تا آخر کنارم باش و من هستم هنوز
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تو اندیشه ام را به دریا کشاندی
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گویا تمام عمر خود را بر کویر باریده ام
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به قلبم لازمی دمسان به رگها حاجتی خون فام
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او بی تفاوت رفته است آری نوای درد مند
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عشقا بساط خود ببر جای دیگر بنا گذار
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یاس نگاه تو فشانده گرده بر دنیای من
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دانم که روزی روی قلب تو سرایت می کنم
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تو باشی کاش تا مردن کنار قلب غمگینم
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سهم خود را در کنارش دل ز تقدیرم ستانده
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ما عاطفه کیشان نه تنها عشق احیا می کنیم
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به شوق دیدار رخت به هر طرف من می روم
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به درد دوری ات جانا نشان از صبر درمن نیست
نگو با من مدارا کن که قلب من ز آهن نیست
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پاک گردد رنگ معنا از تمام لحظه ها گر
آنکه بهرش لحظه ها ر
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دلم جویای شادی بود وشوق وعشق اطمینان
وفامی خواست ویاری که پایندست تا پایان
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