يکشنبه ۲ دی
اشعار دفتر شعرِ بهاردلتنگی شاعر بهاءالدین داودپور تخلص بامداد
|
|
جبرییل همراه ایل
ازفرازآسمان مستانه آمددرغدیر
|
|
|
|
|
مایه ی شرمساریست
اینکه بی توشه ام ودستهام خالیست
|
|
|
|
|
سرفروبرده چمن
زيرجورجاده وارابه وچرخ
|
|
|
|
|
نفسم در نمياد
روزگارنامراد
|
|
|
|
|
آن هنگام که ماه مغرورانه
درمقابل خیل عظیم ستارگان
|
|
|
|
|
دراین دنیای ناهموار
حقیر وبی کسم چون خار
|
|
|
|
|
برآن تربت که هست تنهای درغربت
هزاران باربادرحمت
|
|
|
|
|
جان تاریک
جاده هاپرپیچ..تنگ وباریک
|
|
|
|
|
سزاست آیاجوانی رابه خاک آرند
به دنبالش تباهی رابه بارآرند
|
|
|
|
|
هوا طوفانی وازآسمان تیر
زمین تشنه زمین خسته زمین پیر
|
|
|
|
|
وقت رستاخیزه
دستها تهی وناچیزه
|
|
|
|
|
ازمیان آدمای این زمان
گاه سگ می شود شاهین وباز
|
|
|
|
|
خوشترین ایام دورانم
درعهدقدیم
بودفصل تابستانم
|
|
|
|
|
این منم من
باکوله باری ازغم واندوه به دوش
|
|
|
|
|
درکربلا غوغاست
گویا محشرکبراست
|
|
|
|
|
فصل مرگم سررسید
روح امیدم دمید
|
|
|
|
|
هزاران عاشقت دربی قراری
نگارا طاقت دوری نداریم
|
|
|
|
|
گرهی کورافتاده به کامم
نفسی ازسرزورمانده به کامم
|
|
|
|
|
تن بیدارچه بیعاراست
دل بی عشق ونافرجام که بی یاراست
|
|
|
|
|
کیست عشق پیمبرزعیم ورهبرعلیست
|
|
|
|
|
شب نشانه سوزوسرما بی امانه
|
|
|
|
|
هوای سردزمستان/چوسوزوآه فقیران
|
|
|
|
|
چشم وجان ما/ای مرادما/ای نیازما/لحظه ای بیا
|
|
|
|
|
خوشامردن خوشا رفتن پی حق رفتن واززندگی رستن
|
|
|
|
|
کاش میشدمرگ راآنگونه هست بایدسرود
کاش میشدراه رفت بین خطوط
|
|
|
|
|
شه لافتاالا علی به اذن حق شده ای ولی
|
|
|
|
|
رقص وموج برگ/لحظه های ناب مرگ
|
|
|
|
|
درغروبی یکه وتنها
من بودم وجاده ی رنگها
|
|
|
|
|
درغدیرچنانکه میدانی
بودفصل شیدایی
لحظه های بی قراری
|
|
|
|
|
ای پرنده /ای روح سرزنده/حقارتهازخودبرگیر
|
|
|
|
|
تومرابه من رسان /تودراین عصروزمان
|
|
|