شنبه ۹ فروردين
اشعار دفتر شعرِ بخاطر چشمانش شاعر حسین دلجویی
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دختر شاعرم، تو شاعر باش
تا ابد با دلم ، معاصر باش
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در حلقه جام و غزل وساغر وساقی/
حسرت به دلی گوشه میخانه بمیرد
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صدها سوال بین دو تا چشم بی جواب
در لابلاي مُبهم یک پرس و جو شکست
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شبی که بر سر شعرم شبیه چادُر بود
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تو از دیار حافظی و از تبار شعر//
من منزوی ترین غزل ، بایگانی ام
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پشت این پنجره یخ زده ام ها...نکنید/
که در این شبزدگی کرکره ام میشکند
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کاش اگر خط خط این جاده امانم بدهد//
سفری با غزل عشق هم آواز کنم
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من که از شعـر و غــزل هیچ نمی دانستم//
تا که در فرضــیه ی چشــم تو اثبات شدم
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همچو آن یغمای نیشابوریم که بعد خود//
متصل مرهون لطف و طرح استانداریم
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سحر آمد بساط تیرگی رفت//
سحر آمد گل مهتاب وا کرد
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همانا هدیه ی ناب خداوند//
همانی که خدای من بمن داد
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بخت اگر بادل نسازد چرخ برهم میزنم//
عشق را تا لامکان با شعر رسوا می کنم
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یا اگر خط خط این جاده مرا بگذارند //غزلم با دم عشق تو هم آ
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گمان کنم که به خُردی موذنی مدهوش//
حروف نام تو خوانده ست بر در گوشم
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ما کجا و غزل چشم سیاه تو کجا ؟
طبع ما کودک نوپا و دس انداز ،غزل
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من و آسمون خاکستری ام//من و این نم نم ناباوری ام
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عرش سیمرغ به چنگ مگس انداخته اند
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هامون دل پاک و بی کلک آوردم
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بسکه مریم خفته در اندیشه ات//بوی احساسی مطرا میدهی
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پشت محراب دو چشم تو گرفتارانند
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چهره بگشای و شبم را به تغزل بنواز
جلوه کن تا گل مهتاب نمایان بشود
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خوشا بعشق که ای آخرین الهه ناز،،
به نای گرم «بنان» ماهتاب من بشوی
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طوفانی دلم به کدامین ،پناه ،وای//
دست من و کرانه تو ،هیچ ،بگذریم
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شعری با مضمون طنز و زبان محاوره ای محلی شیراز
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عاشقانه ،راه و چاه ، زندگی ...
بهر فرزندان خود سنجید و رفت
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در اوج شاعر سوزیم ،آتش فشانی میکنم
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شاعران پشت چلیپای تو دل میبازند
عاشقان پیش مسیحای تو جان میگیرند
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آمد دوباره دفتر شعرم ورق خورد یعنی دوباره سبز شد چشم بهارم
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سال حماسه هاست ،خدا را حماسه ای
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عمری ست که ما معتکف کوی توایم،،،نومید مکن ز هدیه ای سائل خویش
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چقدر حس قشنگیست عاشق و آرام ،،
کمی غزل بسرایم به یادگار خودم
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ببین که روح غزل ها به التماس آمد
همین که قافیه ها را به دست تو دادم
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ما جای شعر خون دل خود سرشته ایم
باشد که دوستان به نظر کیمیا کنند...
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با سلام و عرض ادب و احترام محضر تک تک فرهیختگان و شاعران و اساتید والامقام و والاگهر و فرهیخته ام...
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چندیست که بغض غزلم پای به ماهست
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آنقدر ربودند که آمار نداریم
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به اشتباه هزاران غزل ز چشم تو رفت
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زیر سایه خط ساحل لب دریاعشق است
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تا سیب سر شاخ تو لرزید و غـزل گفت
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هر شبم باید حساب مشق هایش پس دهم
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اینهمه ناز نکن ،فتح دلم سخت نبود
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رفتی و کم کم دلم خـو کرده با تردیدها
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دو دستمان ز سر امتحان به هم بخورد
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ای خوشا در زندگی مهمان چشمانت شدن
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در کلاس چشم هایت عشق معنا می کنند
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مهر تو آمده با شیر و به جان خواهد شد
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بعد آن قــهوه همان فال مرا شاعر کرد
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وای با فاصله ها هفـته و ماهت چه کنم؟
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میرسد یک روز مهمان میکند گلپونه ها....
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وای بایـد بس کنم این حـول ولاحوال ها
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باز شــرمنده ترین رستــــم فرخزادم
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گاهی نگاه قابله ای زندگانی است
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دستهای حســـرتم در التجای بخت بود
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بی هــــمدمیم و راه دراز است و شب فراز
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پرستویی غمیـن از کوچ ایام
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مجــــــری بیـچاره ی اخبار عاشق می شود
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من آن مرداب خامـوشم سپید دست هایت کو؟
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من گمـانم حق آب و سبـزه و گل میبری
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روستایـی دلـــم را برده شرم چشم ها
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کس به دلجـویی ما گر چه سراغی نگرفت
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شدم مفـتـون چشم دلکش مست ایــاز تو
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