چهارشنبه ۶ فروردين
اشعار دفتر شعرِ دل نوشته ها شاعر کیوان رادفر
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بساط قهوه ی تلخت ، به فال هم نرسید
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زنده در آتش فقط با اشک باور مانده ایم
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فقط هر آنچه که دیدم ، به صحن شعر کشیدم
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چرا زچشم تو پنهان شدم نپرس از من
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در ازدحام شهر ، باید که دیده شد
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چندی است از کسی یک حرف ساده را باور نمی کنم
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روز ها پرسه زدم دور وبر کوی سرابت
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من معترف عشق و در وادی حاشا تو
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بوسه ی شیرین تو رو ، صورت من حس می کنه
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آنچه بردند از میان سفره های اعتماد
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یه درخت پیرو تنها ... توی دشت بی کسی ها
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تو را در دفتر شعرم
تماشا می کنم هر روز
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آمد و از کوچه ی دل ها گذشت
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مزرعه ای به وسعتِ ، شهر خداست سینه ام
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یک لگد محکم بزن در جام عشق
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جمله ای گفتند ، خیلی طعنه دار
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بی تفاوت از کنارش بگذرم یا نگذرم ؟
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دل بریدن از مهین و از شهین !!!
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درختِ ... باورم ، در خانه ی تزویر، خشکید
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در کلمات شعر ما ، این همه دست می برند
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دست و پا هم می زنم اما ببین
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رفتن از کوچه ی تردید و رسیدن به گذرکاه یقین
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نوسرایان چلچراغ نقدتان پر نفت باد
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دیشب چه هوایی بود ، در کوچه ی تنهایی
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بکش او را سر هرمعرکه دنبال خودت
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با دو چشم بسته تا مقصد دویدن مشکل است
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عشق ممنوعه ی ما ... یه خطا بود یه گناه
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بیدار شدم دیدم ... من خواب نمی دیدم
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عقربه ها نشون می دن ... ساعت خستگیمونو
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کهنه کتاب عشق را ، بس که نخوانده ای ببین
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داستانی که مکرّر خوانده شد
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تو شهر دل مرده ی ما ... قاصدکم را نمی دن
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ما آخه مثل بعضیا ............
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یکی از گوشه ی زندون ،..... نگاهش رو به مهتابه
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تو دریای نگاه تو ، یه ماهی داره می خنده
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نغمه هایت را پرستویم ، کجا سر می کنی ؟
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تف به زمانه ای که پا ، همره دل نمی شود
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ما به سجاده خریدار ثوابی نیستیم
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کودکی خواب خوشی بود که تکرار نشد
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عکس روی تو به دیوار دلم قاب شده
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نقد کن این چک وا خورده ی اشعار مرا
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ساحلی نیست و ما دلخوش پارو زدنیم
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آن سیه روز چه آمد سر دل های سپید ؟
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اختر او چه می کند در دل آسمان من
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از خدا هم بیشتر ، راز و نیازم با تو بود
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شده شاید قفس حنجره جادو امشب
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زیر پایم بوریا و چار دیوارم گلی است
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شعر ها گقتم ولی دیوان من را کس ندید
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يلدا شب شادي شب بي غم بودن
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واي از اين توجيه هاي هم صدا با حبّ و بغض
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بازي مكن اي خالق هستي با ما
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سالها رد شده از اون شب گريه هاي تو
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عشق را خواهم ولي فرهنگ ، بيش
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وسط بركه ي چشماي تو مهتاب شنا كرد
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تو سكوت شبم يه صداييه كه--
مث زمزمه ي نفساي توئه
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هر آنکس این کند اندر بهشت است
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سنگفرش عدل را كي مي توان در كوچه هاي شهر ديد ؟
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ديوار محبت بر ... شالوده اي از احساس
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دیده ها را باز کن تا تشنه ی دیدن شوند
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گفتند كه با آبي ، زين نهر سفر بايد
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با شما ديروز بودم همدم و امروز نه
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چشم را مي بندم و با خود تجسم مي كنم
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ساز شعرم بي تو و بي تار مويت كوك نيست
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گهي از درد و گه از غم نوشتم
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سنّ ِ من کارد است و گویی آرزو هایم پنیر
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با قطاری آمدیم و با قطاری می رویم
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باز ، گویی صدا ، صدای شما* ست
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ما جانِ عزیزیم که در جسم اسیریم
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