چهارشنبه ۵ دی
اشعار دفتر شعرِ چهارپاره ها شاعر مهرداد عزیزیان
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امشب سکون ثانیه را لمس میکنم
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دل را نجات میدهم از بند آرزو
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خیالاتی شدم شاید جهانم تازه تر گردد
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گوشی ات را به سینه ام نگذار
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روزی نشست مثل پدر پشت پنجره
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آگاه کُنیدم که در این محکمه قاضیست؟
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این داستان نخ نما تقصیر شاعر نیست
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فکری به حال قمری محزون کنی بس است
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من طالب ِ هر حکمم کز چشم خمار آید
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حالا خودت ببین پسرت در جهان کجاست
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دل ساده را بلرزان به دروغ آشنایی
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بعد از این خاک کنم سینه سودایی را
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سینه ام بی تو پریش است پریش
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دنیا اگر انسان نمیخواهد خیالی نیست
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یار دردانه ی من حیف که هر منظره ای....
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اول و آخر ِ تنهایی شاعر گور است
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راوی بیا در این تهاجم هر دو مردودیم
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نزدیک تر به یارم، از جامه در خیالم
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دنباله ی این بازی بی قاعده با تو
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با من کدامین حرف غیر از دیدنت مانده
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ببین غرق قنوت است قلب عاشق من
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میزند بارن و بزم دیدگان جور است باز
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در خانه ای که روزگاری های و هویی داشت
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من به فکر خود و تنهایی باران زده ام
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من به دنبال رگ گمشده ام میگردم
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عمریست میکشم به زمین پای خاطرات
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من اما همون عاشق ِ تازه کارم
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قامتم اندازه ی این درد نیست
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من که طرفدار ِ همین بازیَم
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یک پاره از این خرقه به دیباج نبخشم
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با شب و شعر و شکارِ واژه ها درگیر ،من
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