يکشنبه ۳۰ دی
اشعار دفتر شعرِ يك نفر در دل تاريكي ها شاعر م فریاد(محمدرضا زارع)
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كجايي اي تمام لحظه هايم در تو خاكستر؟
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ساده بودي و رئوف
نفَست بوي تبسّم مي داد...
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تقدیم به استاد عزیزم: شاهرخ
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من هنوز اينجايم... همچنان در محبس
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با تمام جهان به صلح می رسم اگر...
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صبح بيدار شدند... و نديدند نشاني از عشق!
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آمدم بگویم قلبم
روستای متروکی
باب روح پَرشکسته ی توست...
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كودكانم! اي غزلهاي قشنگ مهرباني...
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برگها كه مي رقصند ياد تو مي افتم...
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تو نديدي سهراب!
هيچ بيدي
سايه اش را بفروشد به زمين
من ولي مادري را ديدم
شير را نسيه نمي
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دست كلاغها
كه ضامن زمستان را كشيد
سروها...
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اولين جرعه ي جام لب تو...
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... ببخش اي مرد
تفنگت را شبي من...
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دشتهاي لاله خيزت زنده باد!
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رو به درياي تفكر برويم
و نخواهيم كه تنهايي مان
توي آغو
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هیچکس منتظر آمدن صبح نبود...
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تقديم به روح بزرگ زنده ياد فرّخي يزدي
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... بگو اينجا
پرنده بال و نُك دارد
بگو سيگار خوشبختي
هزاران جاي پُك
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مي گشايم بالهايم را شبي...
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در اين آمدن ها...رفتن ها...
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در چنگ تقدیر از نفس افتاد آخر...
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معتاد شده ام به "دوستت دارم هايت"...
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دست خيال تو بر گردن من و...
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آمدن ها هميشه بوي تنهايي مي دهد... و رفتن ها بوي عشق...
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چشممونو بي فروغ ميخوان و كور...
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و بگوييد به مردان و زنان...
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من و تو عاشق هم بوده ايم از روزگاري دور...
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دست عشق
كه از پاكت كودكي درَم آورد...
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... و من رو به سويي مي روم...
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اي در دل من!
اي هوس و تاب و تبم!
اي نام تو هر شام و سحر ور�
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پريد از خواب ميل بوسه ي...
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... و به دست همه ي اهل زمين
ما چراغي داديم از جنس هوس
تا...
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من آه باد را در سينه ي افسرده ي پائيز مي بينم...
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وقتي گلوله
در باغ شب قدم مي زند...
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ساده بودي و رئوف
نفَست بوي تبسم مي داد...
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شب آمد دفتر عشق تو وا شد
غزلها از دو چشمم مي چكيدند...
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ايستاده شيطان
بر بلنداي توحيد
و بيرحمانه...
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