يکشنبه ۲ دی
اشعار دفتر شعرِ کفن های کاغذی شاعر مینا امیریان(خورشید)
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تقدیم به مادران رنج کشیده سرزمینم
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سر این زلزله ها عاقبت بم دارد
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چه با دنیای خود کردم؟که چون پروانه میگردم
به گرد شمع خاموشی که بیمش از حرارت هاست
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روزی به جای گریه های گاه و بیگاهم
با جمجمه در مستطیلی ساده میخندم
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واژه ها لال در اندوه زمان میمیرند
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بعدها خواهم نوشت از قصه حالا بگذریم...
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ای حادثه ی خسته ی بی جبران،عشق
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اینجا صدای مردمان خوب ایران است
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هر لحظه در سمی ترین حالات ممکن...
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خورشید در شب های بی فردا نمیخوابد
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چه با دنیای ما کردی؟تو با چرچیل چشمانت
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دریا فقط پسمانده ای از اشک ماهی هاست
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آب این محفظه تبخیر شود میمیرم
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به پاس قدردانی از پاکبان های غیور و زحمتکش
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گل های دستش دانه دانه دانه می پژمرد
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آری کسی با اسحله پروانه ها را کشت...
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من حس آن سرباز را دارم که بعد از جنگ....
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نتوان کوچ اگر بال و پری هم باشد
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آنجا که مترسک شده دلداده ی زاغی
چشمان کسی در پی نانی،نگران است
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مرگ سهراب جوان در گوشه ی دیوار ها
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فصل بی بارشی ابر کبود
فصل دود
فصل جولان کلاغان حسود
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من ماهی از آب گریزانم و هربار...
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سکوتی پر ز فریادم،غمِ بغض دماوندم...
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شاید کسی در حق شهریور جفا کرده
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نفسش عطر خوش لاله و شب بوها بود
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