چهارشنبه ۲۸ آذر
اشعار دفتر شعرِ دوبیتی شاعر علیرضا مرادی( مراد )
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فلک مطلا گشت از صیحه و نور
شب میلاد مَهی زیباست، چو حور
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تقدیر تورا رفته بر این آب نوشت
حیف از دل ما، که بیتاب نوشت
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دم غَنیمت شُمرید از فرجه و اقبال دگر
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صورتی از لطف خدایی مادر
پرتوی از نور سمایی مادر
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بصیر گیتی و اسرار نهان همه تو
به قعر دلها نشینی، جانان همه تو
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به میثاق توام، دریا نخواهم
ز این شوریدگی بلوا نخواهم
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یکی عابد به مسجد حجره کرده
یکی به بد مستی یاد شهره کرده
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شب، شب زیباست محفل ما
شب ، شب یلداست همدل ما
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دمی آه، دمی سوز، سینه مان چاک
خُدو عالمیم مطرود، نی کنیم پاک
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غریبی رفته ام هجرم چه خاموش
غمین و غمگشته ام یادم فراموش
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خوشا آنان که به خواب گورند
خوشا آنان که به اقلیم دورند
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به مهجوری دلم خونو کبابه
مرا جانی کجایی ای ربابه؟
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کجایی ای مهر بانو مهربان یار
رهیدی ز ما همچو آهوان یار
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مژده ده طرب ما، هم نفسی می آید
ساقیا باده بدار یار و کسی می آید
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پرید طیر جانم تا حبیب اش برسد
پر شکستند ، باش طبیب اش برسد
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به کوی یار چو بودم عشقم جان گرفت
مرا این بوته عشق سرانجام بنیان گرفت
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دلی خونینه داری ز ما روی نگردان
حالی مرا نمانده، ما را دگر نرنجان
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ساقی ام ساغر بدست می بدوش
از نوا آرم باده ای ناب هی بنوش
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محمل بدار کـــــه آسیمه سر نشود
هر ساحلی که ساحل رامسر نشود
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من آن دلداده ام راهم نبندید
کزین دیوانگی بر من نخندید
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مرو جانا دلی بی کینه دارم
غمی در دل اندر سینه دارم
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مرو ای دل بمان رو کن نشانی
که خاطر خواهمی گر ما بمانی
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به بی مهری دلم غمخانه ام کردی
رفیق این ساقی میخانه ام کردی
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جفا کاری مرا دل، بیدل من
ستم کاری مرا دل، بددل من
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به مردی مِی بدان ماوا نخوردم
تک ام بی تو، تک خرما نخوردم
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این دو روز زندگی راهم ندادی
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حلقه وصلت گفته ای فراموشم باد
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کو کجایی ای رفیق دل و تنهایی ام
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این زلال زندگانی ما به هیچش داده ایم
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رفته ام از یادها هان دل فراموشم مکن
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آن طیر پرواز رفته، سوی زمینش جای نیست
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هبوط آدم ام از بهشت پروردگارم بگو
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مست مستیم، شب نشینی جمع مستان می رویم
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مهر شب را شب نوازان بیدار آگهند
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نازنینم جرعه ای عشق مرا نوشم ده
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کو به کو زِ کوی یاران خسته ام
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کاش دل، به مهر وفا بود
زندگی پر ز مهر صفا بود
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از شرر عشق سوز به دل این دلسوخته
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نازنینَم سرخوشم به لبخندی مرا شادابی بده
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نازنینم باده خوردهِ مست و مَدهُوشم بیا
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گر تو دل با منی، دل فدای کوی تو
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ساده بودیم نقدش به نسیه دادیم رفت
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بَزم را نازنین این آن من نبینم کس
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شوق دیدار تو برده جانان من
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با همه بود نَبودم عاشق و غمخوار بود
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ابر بارانم، اشک اشکم حکایت می کنم
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این دل اسیر، دل دریایی تو دلدار
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به کوی یارم، پی نشانی از دلدار من
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جانان من، شیرین گل زیبای من
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در کوی عشق بازان، ما را گذر نباشد
این یار بی وفا را، طعنه حذر نباشد
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