جمعه ۱۴ دی
اشعار دفتر شعرِ کاکتوس شاعر ناصر ترهنده (یارا)
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یلدای داغدار
یلدای داغدار، سیه پوش سوگوار
ای خسته از حقارت رؤیای بی شمار
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ثانیه بر ثانیه خیزد غمی
تسلیت تا اطلاع ثانوی
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عید بی پسته و بی ماهی و مهمان خوش باد
عمو نوروز بدون دفِ رقصان خوش باد
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ببین شکسته کشتی دریده بادبانش
میان باد و باران شکسته پاروانش
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پدر سوخت تا ساخت جان تو را
پدر جاودان است همچون خدا
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ما باده نخورده ایم، امّا مستیم
صد جام به دست خویشتن بشکستیم
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غم در هوای موسیقی ات، جیغ میکشد
با هر نتش به حنجره ات، تیغ میکشد
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قفس سینه ام پر از درد است
زخم هایم به اصل یک مرد است
زخم هایم به عمق اقیانوس
ساحلش ناکجا و بی ف
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در نهمین روز ز خرداد بود
عشق من آن روز به بنیاد بود
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ای زادگاه پیر من،فرخنده باشد روز تو
مرهم ندارم تا نهم،بر زخم عالم سوز تو
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شعر من مثل آن پرنده که گفت:
خسته ام ، رفت و بر تفنگ نشست !
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نسترن ها همه تقدیم تو بادا مادر
اسم تو پاک ترین واژهء دنیا مادر
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عشاق ولنتاینتان مبارک باد
آواز خوش عشق بخوانید آزاد
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بیاد پشت برج و بی بیانش
همان نفتون و کارون روانش
همان نمره یک و بازار کوچک
(ام.آی.اس) نام او ب
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من بودم و تو بودی و باران
یک بارش شدید خیابان
آن حس خیس رویش یک عشق
یک اتفاق ساده و آسان
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کاش امروز ناصر اینجا بود
شور و شعر و ترانه بر پا بود
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من چرا باز چنین تشنه باران شده ام
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من از سکوت واژهها در ذهن تو دلواپسم...
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شهرمن مسجدسلیمان دگر از یاد برفت
جسم آن بود طلا و خون آن گوهر نفت
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زن را خدا فرشته ی بی بال آفرید
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نقدهاتـان پُر زِ اغراض و هدف هـای شمــاست
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پدر! بر قابِ عکسِ تو نگاهم...
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در این شعر رمزی وجود دارد !!؟؟
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شعرم گریست امشب و من نوحه خوان شدم...
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خوشا چشمی که میبیند
بهار و عید ایرانی
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گیتارِ قلبِ خویش به پیکِ تو میزنم...
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افکار کهنه سوزان
با عشق کن مدارا
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ننه سرما دوباره سرمارو با خود میاره
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دیشب دوباره شعر به ذهنم خطور کرد
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منم کاکتوس کوه و تشنه شن زار بیابانها
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( دلبرانه )
ترنم های شعر من شبانست
نگاه من برایت عاشقان
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