سه شنبه ۱۹ فروردين
اشعار دفتر شعرِ ردپای سایه ها شاعر علیرضا صانعی
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تو هم مثل من داری توو زندگی
یکی رو توو قلبت صدا میزنی
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میخوام از خونه برم
به یه جای سوت و کور
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بذار هرچی فاصلس
بینِ ما تموم بشه
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مثه یه پرنده ام که
بالِ پرواز نداره
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دلم میخواد گریه کنم
به حال و روزِ مردمم
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خاکی که در آن عشق به معنای دلار است
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چهار سال عمرِ من صرفِ رسیدن به لیسانسی شد
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چقد من سادگی کردم
به تو گفتم دوسِت دارم
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از اون شب که جوابم رو ندادی
پروفایلت رو دیگه چک نکردم
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نگاهتو ازم نگیر
منو دیوونه تر نکن
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توو یه لحظه اومدی
توو یه لحظه هم میری
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آری بانو! صدایتان زیبا است
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امیدوارم، که بعد از من
دلش از غصه خالی شه
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یه امشب بیا بی خیالی کنیم
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میخوام از سرم فکرتو دور کنم
میدونم باید روزها بگذره
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منو از دنیا ببر
دیگه طاقت ندارم
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هنوزم واسه ی تو
شبا گریه میکنم
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گفتی دارم میام پیشت
گفتی که منتظر بمون
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منوتو یا من و او یا آنها
همه بازیگرانِ دنیاییم
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خوش به حالِ آنکه در این زندگی
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ما دوتا رفیقای خوبی شدیم
مثه خونواده کنارِ همیم
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زندگی تصویرِ دوربین های ماست
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افسوس که از حالِ خودت بی خبری
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از زمین و آسمان درمانده ام
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به هرجا می روی آنجا کسی یادش نمی ماند
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دلم میخواد تا قبلِ فصلِ سرما
یه سر بریم با همدیگه به دریا
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سی سال برای بودنش کافی بود
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دو سه ماهی میشه، که به یادت هستم
تو یه کاری کردی، که به تو دل بستم
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از دور تو را دیدم و لبخند زدم
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هفتم دی سالها من پیش از این
آمدم بهرِ وجودی در زمین
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ترسم از روزی رسد فردا نباشد مادرم
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پاییز که میشه به یادِ توام
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غرورِ منو زیرِ پاهات نذار
منی که همه چیزمو باختم
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قول نمیدم دیگه
بعدِ تو عاشق شم
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آرامشِ شب های تو
مدیونِ افکارِ منه!
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یه چیزی توو وجودت هست
که انگار توی هیشکی نیست
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شاید دنیا همین روزا
فراموشم کنه کم کم
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از من رو، برنگردون که
من بیشتر، عاشقت میشم!
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خواستم چیزی بگویم... خواستم... اما نشد
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از انتخابِ خودم بابت تو شک دارم
که از خدا طلبِ یاری و کمک دارم
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تو یه چیزی داره چشمات
که منو دیوونه کرده
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اشتباه از من بود
من نباید هرگز
به تو دل میدادم
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کسی به چشمِ خمارم دگر نمی آید
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بدترین حسِ توو دنیا اینه که
بدونی هیشکی باهات نمیمونه
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هر چیزی عمری داره
حتی عشق و عاشقی
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الهی من از دستِ تو دِق کنم
که توو رابطه تو یه {کم طاقتی}
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یه وقتا که تنها میشم
به آسمون زُل میزنم
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رفتی و دیگه واسه من
آدمِ سابق نمیشی
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آدما تا یه گرفتاری دارن
تازه یادشون میاد دعا کنن
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به دنبالِ یه تغییرم
چجوریشو نمیدونم
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کسی جز من برای مرگِ من فردا نمی گرید
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آرام بیا باز که صحبت بکنیم
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تو ماهِ بهترین شبِ ستاره های روشنی
تو بهترین بهانه ی نفس کشیدنِ منی!
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در درونم حرف های بی شماری مانده است
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یه روز میای به دیدنم دوباره
میای ولی فایده واسم نداره!
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هرچه آرامم تو بی تابی هنوز
هرچه غمگینم تو شادابی هنوز
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عاشقم از موقعی که خنده هات
مونده به یادم به همراهِ نگات
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تو رو وقتی که میبینم
هنوزم مثلِ اون سابق
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توی فالم اومده همین روزا
انگاری قراره از دنیا برم
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نمیخوام دیگه بمونی پیشِ من
به همین تنهایی عادت می کنم
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اسمتو از همه جا پاک میکنم
نمیخوام دیگه به یادت بمونم
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دوس دارم تا آخرِ مهندسی
یه دَفه پاشم بیام خواستگاریت!
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یه کاری نکن تا پشیمون بشم
از این فرصتی که تو رو دوس دارم
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در میانِ سایه ها پنهان بمانی بهتر است
از میانِ بادها طوفان بمانی بهتر است
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فِک نمیکردی یه روز جوابتو بهت بدم؟
یا نمیخواستی تمومِ حرفامو بهت بگم؟
صبرِ من حدی داره!
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چِقد قشنگ بوده قدیم ندیما
دورهمی بدونِ این گوشیها
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برام هیچ فرقی نداره که تو
چجوری میخوای با دلم سر کنی
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خدا کند به گناهی که مبتلا نشوی
اسیرِ گفتنِ توهین و ناسزا نشوی
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