پنجشنبه ۶ دی
اشعار دفتر شعرِ اشک ها و لبخندها شاعر عاطفه فلاح
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تو به پایان ِ راه نزدیکی
من به گورستان ِ آدم ها
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بر چشم حوّا گریه کن نم نم
دیگر بهشتت نیست ای آدم!
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جمعه غم را دو برابر می کند
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چشم ِ من
اقیانوس ِ بی تابم . . .
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مرا به خلوتت ببر ...خدای من ٬ خدای من
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دریای ِ دور از ساحلم
این روزها ،تنها
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صدام کن مثل ِ روز ِ اولمون
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تو چه دیدی که طرفدار ِ غمی . . .
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دوست داشتنت اتفاق ِ عجیبی بود . . .
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تو سالهاست که با ستاره ها رفته ای ...
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ای کاش
تمام ِ آیینه ها . . .
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به کجا میروی ای عشق . . .
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مــه شدی ٫ مهتاب شدم
در دل ِ تو آب شدم !
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تو که باشی به تماشای ِ جهان می مانم
من کنار ِ تو و غم ها ٫ جوان می مانم !
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بهار ِ من
صدای من برای تو
ز قصه های عاشقی
پر از ترانه ها شده
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مادرم هر روز
از باغچه ی چشمانش
اشک و می چیند وآه
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می ترســــم . . .
فصل ِ یاس ها تمام شود
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اَبــر ِ من٫ پاییز هم می گذرد
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شیــــرین لب ِ تو سرخ ِ اناریسـت ز پاییز
من عاشق ِ آه شــَـهد ِ لـبانم ٫ تو چه دانی ؟!
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دریا نگرانم بود
چون غرق تر از پیشم
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دل ِ من دلخوشی اش ٫نیست که نیست
دگـَر آوای ِ خوشش٫نیست که نیست
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من چهار فصلم پایـــیز است !
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ببار باران
ببار هر شب
به روی ِ گیسوان ِ شب
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منم لبریز ِ خواهش ها
جهانم بی تو ابری ماند!
من ابر ِ باروری بودم
که در چشمان ِ تو جا ماند !
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من آماده ام . . !
تا دوباره قربانی ِ نگــــاه ِ تــــــــو شوم !
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درون ِ باغ ِ عاشقی
خزان ِ دل به سر رسید
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من سزاوار ِ زندگی بودم
و گناهی که زنده ماندن بود
زندگی
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دختر كه باشي
باد مژه هايت را مي رقصاند
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ساعت های نبودنت را به دوش می کشم و به دریا میریزم . . .
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قلمم را گم کرده ام .
میخواهم از چشم هایت بنویسم
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دل ِ دریا هم گرفته ؛ بی تو انگار موج نداره
بال ِ پروانه شکسته ؛ بی تو دیگه اوج نداره!
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آسمون بی تو و چشمات داره رنگ ِ شب می گیره
ستاره نوری نداره ؛ داره از دوریت می میره
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هر لحظه باید مال ِ من باشی
من وارث ِ چَشمان ِ تو هستم!
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مـــهربان است...
آنقدر که با تمام ِ غم هایش
آغوشش را به روی اشک هایم باز می کند.
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گاهی تمام ِ آرزوها سراب می شود
گاهی تمام ِ دلت مثل ِ قند آب می شود
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دل زِ من و مَن ز ِ دلم بی خبر
من که دگر هر چه غم است از بـَرَم!
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گـــاهی تمام می شوم در خودم
و تـــه نشیــن های بــودنم را
ســاعــت ِ 9 شب بیرون می گذارم . . !!
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کــاش 2ساله میشدم!
من هــنوز برای رسیدن به 2،دومی آماده نبودم !ِ
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دل بکن از مــن تـــو دیــوانه
بار ِ مــَن منزلگـَهـَش کـَج بــود
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بنویس ..
/ نقطه سر ِ خــَط/ ...
دنیای عجیـبیست!! ...
/سکوت ِ ممتد/ ...
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تمام دنيا همين است كه مي بيني
تو از شاخه هاي خالي چه چيز مي چيني؟!
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من و این سکوت ِ مبهم
من و دنیای ِ پـُر از غـَم
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جُــمعه ...
جمعه ی من
تمام نمی شود این غم ِ هزار ساله ات ...!
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بدون ِ تو نگاه ِ من میمونه خیره به راهـِت
چقدر دیر اومدی پیشم ، تو و اون صورت ِ ماهِت
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اَبرِ چشمم گر ببارد،گله ای نیست زِ تو
آسمان ِ دل تو باش و هر زمان بر من ببار
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نکند کنج ِ دل ِ تنهایَت
بغضی بشکند آرام و بریزد از چشم !
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