شنبه ۱۶ فروردين
اشعار دفتر شعرِ تراست خاطر شاعر بهزاد بهلولی تخلص بهیاد
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تمام خوابها با تو به رویا ختم خواهد شد
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سوی چشمم برده اشک دیده بازآ سوی من
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ای ماه که چشمم همه ی عمر ترا قاب گرفته
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ظاهراً از نگرانی دل من در ضربان است هنوز
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نیستم بردی تمامم بلکه آری هست و نیست
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گفتا كه چو درياست غمم سهمت حبابيست
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دیدار ترا چون تو شدن ،آینه آور
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با من ساده دل از سادگی عشق بگو
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به خواب گفتمش بیا گفت همین خواب بَسَت
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چون دعای خیر ما را دید خود گردون گریست
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تشنه ها در ساحل دریا و لیکن هیچ سیرابی نبود
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سر به هوا بود دلم که آن هوا مال تو بود
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جهان جای شگفتی هاست باور کن
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مرا تو واجبی از هر چه واجب تر
گذشتم از هرچه واجبم و هرآن مستحبم
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هیچ نگفتم ترا هر چه که دارم تویی
ترسمت این راز را دل ببرد زیر خاک
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اگر چه بی تو بودن همان مرگ پنهانیست
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پیش من باش هوای تو کشم بر نفسم
از همه عالم و آدم تو مرا باش بسم
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ز اسم تو هزار بار مشق ترانه كرده ام
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حوّاترینم نیستی ، در نیستت آدم مباد
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سازم اگر که جمله ای فاعل آمدن تویی
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فراق خاطرم تویی گرچه بخاطرم تویی
درآ برون ز فطرتم کز آدمم نهان شدی
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تویی تویی عسل مرا / بوده ای از ازل مرا
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شرط آرامش دل در غم تو تمکین است
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من خود زلیخای خودم آلوده بادا دامنم
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آينده ی من چاره ندارد به جز از ديدن رويت
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بی بال و پر پریدن آیا شنیده بودی
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هر چه در دنیا بدیدم آرزو و کاش شد
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گفتم بنویسم شعر در وصف تو ای مادر
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آن خون که ز دیدنت به چهره دود بسی زیباست
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دیوانه چو دیوانه ببیند خوشش آید
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