يکشنبه ۲ دی
اشعار دفتر شعرِ خط خطی های دلم شاعر فاطمه مهری
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سپید هایم
راه گم کرده اند
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و من با عشق تو یاد مسیحا میکنم هر شب
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به مهر برایم طناب دار بفرستید
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بــی تــو ای
ای نــبــودت ســرد بــا فــصــل زمــســتــان چــه ڪــنــمــ
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به رقص می آورند دیوان آزادی را
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می خواهمت
تنها برای نفس کشیدن....
فاطمه_مهری
دلنوشته
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گشته صبرم پیر و نابینا امید
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حافظه ی احساسی گم شده است
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من به شوق دیدنت اینگونه هوشیارم هنوز
ور نه این شب های سرد دیوانه می خواهد چکار
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و من جاهل
چه آگاهانه
در دشت موهایش...
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به چه کس بد کردم
که مرا نفرین کرد
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به دلم افتاده امروز می آیی
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دور از تو ام و تک تک سلول های من...
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می روی جانم به قربانت ولی آهسته تر
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مرا دردیست گر گویم به سنگی
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تو را مانند جانم دوست دارم
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خسته ام
خسته از دوری هایی که نزدیک نشد
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غم دیریت مونو لیوه کرد کلوسوم
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دلخوشی هم بر نمی دارد نقاب
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به چشمم سراب تو آمد و گم شد ره خانه ام
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روزی رسد که مدام دلت برای من تنگ می شود
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غمباد گرفته گلوی احساسم را
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آنکس که زچشم افتاد دگر رفت از دست
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طوری در آغوشم بگیر
که حسرت هیچ عاشقانه ای در دلم لانه نکند
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به امید شنیدن آوای عشق من
به قفس می کشی تمام قناری های بوستان را
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تو را سپاس که منت نهادی بر چشم دل
که کردی در این بیتوته منزل
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هر روز سرودم و نشد یار
چون غیر منی ست همدم او
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گفتم که بدانی نه من آنم که تو دیدی
نه تو آنی که ز من اینگونه رمیدی
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گشوده ای به باغ دل دری زچشم سبز خود
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چیست سهمم زان همه رنج و تلاش
ای دریغ از آن همه حسرت و کاش
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همه ی روزها فراموش می شوند
جز همان روزی که باید
جز همان چشمی که با من غزل می سراید
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مرا با خاطراتت زندگی بود
که رقصیدیم با ساز خوش آهنگ
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من به چشمان آن آینه رشک می ورزم
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