پنجشنبه ۱ آذر
اشعار دفتر شعرِ منتشر نشده شاعر مریم محبوب
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تصـویر یک زن در حصـار شـیشـــه و قاب.....
تـدفـیـن ایــمان در فـضـای تـنگ محـــراب.....
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آتـــش زِ نـای خیــزد و نامـش هنــر شـود....
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خوش به روزگار سرو و خوش به حال اطلسی ها
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زِ قـــدرِ شب قــدر ، شب قـدر یافت....
مقــام شـب از قـــدر او صـدر یافت
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زندگی لحظه لحظه اش عشق است
عشـق را لحظـه لحظـه کن تفسـیـــر
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علــم و دانـــش ارث بــــابـــای شــماست
ای که دانـشــــگاه هــا جــای شــماســت
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آواز در گلــوی قنـاری به خون نشست
اندیشــه از تبــاهی گل در جنـــون نشست
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آن بلبــــلم که در دل صــحـرای زنـــــدگی دلبســته صـداقـت خاری اسـت خاطـــرم
آســوده از خی
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به شاعران متعهد سرزمینم ...
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او عاقبـت میآیــد اما در مجــالی ســـبز....
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گفتی به هر کجا که روم آسمان یکی است
خورشیـد هم برای همه خاکیـان یکی است
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به دسـتت سـوزن و نخ آفـریـدند
تـو را بـا دود مطبــــخ آفـریـدنـد
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چقدر شیکی چه آنتیکی مهندس
سراسر طرح و تکنیکی مهندس
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آتش نشان ! آتش بپا کردی ، چه کردی
جان و دل ما را فنــا کردی ، چه کردی
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پیــــــر و فرسـوده و لایعقل و نالان اتوبوس
لولی و منحـرف و گیـــج و پریشان اتوبوس
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