يکشنبه ۲۷ آبان
اشعار دفتر شعرِ غلام قمر شاعر باقر رمزی ( باصر )
|
|
دلِ قَلَمت نَگیرد!!
جانِ قَلَمت نَسوزد!!
نوکِ قَلَمت نَشکَند!!
|
|
|
|
|
بیاد زنده یاد حیدر یغمای خشتمال نیشابوری
من همان یغمای نیشابوری ام
|
|
|
|
|
آلاله ها و سوسن ها مدلینگ شده اند
|
|
|
|
|
منکران و کذّابان،
دودهای شیشهای را بخار دهان تعبیر میکنند.
|
|
|
|
|
نسیانتان باعث
عصیان به جامعه ی محروم گردیده .
|
|
|
|
|
دختر رز همسایه ی دیوار به دیوار .
|
|
|
|
|
این مکان مجهز به دوربین
مدار بسته می باشد ؟؟
|
|
|
|
|
کاسبرگهای صورت
به سوی دریچه ی سیرت حرکت می کنند .
|
|
|
|
|
چوپان فداکار با دهقان دروغگو
|
|
|
|
|
ورود سنتور عریان باباطاهر را
به خانقاه ممنوع کنید
|
|
|
|
|
من متعهد ام که چون تو به زخم زحمتکشان
|
|
|
|
|
شفای امراض معراجمان
تنها با اشک حلقه خانقاه التیام مییابند.
|
|
|
|
|
اگر از گریه می نویسی ، مراقب اطرافت باش
|
|
|
|
|
چه کسی میداند عرق شرم چه مزّهای دارد؟
|
|
|
|
|
ای منزوی ترین و دورترین
خانقاه شاهدانه !!
|
|
|
|
|
خب، چرا تو رئیس دیوانهها بودی ؟
|
|
|
|
|
با توام ای بهارِ فراموش شده .
|
|
|
|
|
دستانم به خوابهای عمیقِ خلسه فرو رفته اند
|
|
|
|
|
واردات خون
از چین پیشانی آغاز شده است
|
|
|
|
|
روزنامههای پرنوی مستشرقین،
به فرهنگ گلاسه تبدیل شد.
|
|
|
|
|
چه بیرحمانه کلاغها
آواز وداع را سر میدهند.
|
|
|
|
|
حرکات موزون و تکراری
کمرِگاه خواهرانِ سماعِ مرا
رصد می کردی ؟؟
|
|
|
|
|
ما نابینایان قبیله روشنایی
|
|
|
|
|
ای دخترانی که قبل از بلوغ جنسیّت
یائسه می شوید !!!
|
|
|
|
|
ما رطب شناسان بامیه چشیده ی رمضانیم ،
|
|
|
|
|
تازیانه تکبر را در پشتش
احساس میکرد
|
|
|
|
|
در فراموشخانۀ توَهّم خویش
از بهار بیزارم .
|
|
|
|
|
دلم گرفته است
حالم خوب نیست
به هوشیاری حساسیت فصلی دارم
|
|
|
|
|
غارهای تاریک جهان حسادت ورزیدند
|
|
|
|
|
ای مدعیان پیغمبرپرور و ستاره آفرین
|
|
|
|
|
من از آسیب، عبرت نگرفتهام
|
|
|
|
|
چه بی رحمانه از بهار میگریزم.
|
|
|
|
|
ساکسیفون طعم تلخی دارد
و همه را . . . .
|
|
|
|
|
آلالهها و سوسنها به مدلینگ مشغول اند
|
|
|
|
|
مرگ بود که در دامان خشخاش
به دنیا میآمد
|
|
|