جمعه ۲ آذر
اشعار دفتر شعرِ اشعار آييني شاعر عليرضا حكيم
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نزدیک حرم پر شدم از جلوه ی ماهش
گویی که دلم مست شد از شوق نگاهش
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محبوب ترین بانوی دنیا،بودی
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مرا در سکوت شبانه ببر
به دیدار ربّ یگانه ببر
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ای دختر معصوم که در بطن کویری
چون ماه درخشنده و چون مشک و عبیری
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قلم از عشق ایمان مینویسد
هم از درد و هم از جان مینویسد
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تورا من شکر گویم روزه دارم
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الا ای آنکه که رحمان و رحیمی
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تا جبرئیل رحمت پیغام سروری داد
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فرزند کعبه بود و،محبوب مسلمین است
"آیین مهر ورزی با یاد او عجین است"
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کرونا آمد و دزدانه در جان بشر افتاد
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شد موسم غم چونکه عزای شه دین است
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علی یعنی ترازوی عدالت
شجاعی جان نثار و با اصالت
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تقدیم به ساحت مقدس علیاکبر( ع)
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کجا جویم تو را ای دختر گل
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پر از مهر و ز خوبی بود،سرشار
گل خنده به رویش وقت دیدار
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يا علي! نام تو بر دل چو دوا ، در همه حال
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ای سرو بلند استقامت
سردار رشید راست قامت
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بلندای غزل هستی به روی بیستون عشق
چو نامت بر زبان افتد شود شوری درون عشق
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هجوم آورد بر من مشکلاتی
و می گشتم پی راه نجاتی
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قصّه ی دوری به سر آید زمانی،ای عزیز
آفتابش می کند روشن جهانی،ای عزیز
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علی یعنی ترازوی عدالت
شجاعی جان نثار و با اصالت
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نیاید روزگاری بی تو بانو
که آید بد بیاری بی تو بانو
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کجا جویم تو را ای دختر گل
کجا مأوا گرفتی همسر گل
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پرستاری،پر از شعر و شعور است
تن رنجور انسان را سرور است
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شهیدان فصل سبز سرنوشتند
شهیدان ساکن کوی بهشتند
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رسید از راه میلاد محمّد
دلِ ویران،شد آباد محمّد
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حسینی بودن و آزاد ، عشق است
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ای میوه ی پاک مصطفی بر تو درود!
دلبند علی مرتضی بر تو درود
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دلم پر مي زند تا كربلا امروز
كشد سر در سرايي پربلا امروز
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قربان مقام تو ، هلا! ضامن آهو
احسن به مرام تو، هلا! ضامن آهو
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خشنود شود خاطرم از روي علي
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جان را به ره عشق فدا بايد كرد
پروانه صفت قصد بلا بايد كرد
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به نام حاكم بيناي دانا
حكيم و قادر و حيّ و توانا
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از حلق علی هی ربّنا پر می زد
می رفت به جایی که نبی سر می زد
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