يکشنبه ۲ دی
اشعار دفتر شعرِ دلنوشته( شعرآذین) شاعر آزیتا احمدی
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آدمی جسم وروانش طلبد گر همه – او-
تــوبـه با نــدبه کند،ذکـر مداوم، یا هـــو
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در سایه ی عشق مجازی،عشق حق یابد بقا
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چون نسیمی هرزمان نزدم بیا،مرسی خدا
تا نپویم راه را تا نا کجا ،مرسی خدا
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خدایا به انجیل و تورات و قرآن
به شورت به شعرت و هم شمس ایران
به نورت به صوتت همه عشق و عرفان
ز
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...
دنیای من و ما بشود باغ پر از گل
هرجا شنوی صوت قناری و قراول
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این چرخ دوّارست وآن ** گردان ماهر ساربان
تا حتم خاک وآسمان ** یکرنگ درآغوش جان
لبخند بر
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در شرارت، مهربانی یا ندامت، نازنین
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در جهانی پرتـنـش ،تزویرو زور
منـزوی،مسرور باشد مستِ نور
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به عشــقـت قســم در د لــم زنــد ه با ش
ر هــا یـــم نــکن ،نــور تــا بنــد ه بـا ش
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با نازِ شاخ وبرگُ هرس،چون طبیب باش
سانازِسرخ،سوسنِ زردِ نَمد، به ما چه؟
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دور نزنیم اگــر
صــبر را؛؛
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به دامان سبز فروهر
پر از شور ونور وگوهر
با شکوه بر اوج برج حمل
به تخت می نشانداین مرد عمل
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آه در گــل نـه صفـا یی نــه وفا یی چه کــنم
شیوه ای می ک
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یلدا
ناخدای کشتی ای
با تارو پودِ نی ونبات وکتان
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به چشم ودل نشو عاشق،حذر کن
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بیاب شـــاه فلــــزی تا
لبــــریز کنــد نیمه ی خـــــــالی را
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به ساحلم کشاند
رقص کنان...
تا خالی کند
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که تَوَهم انعکاسش
سپری ساخت
تا سراب ستاره شدن را
دریای پرتلاطمی ببینم
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که بپوشانم
دورتادور قلبــم را
تاباشد هـــر ورودوخروجی
ممنوع.
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کاش نهرگوارای عسل اینجا ،
روان بود
قبل برزخ بهشتی درخ
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خیلی وقته که چشاشو بسته(کنایه از بیتفاوتی و بی وجدانی)
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دل که خواهـــون نارِه..........صِب تا نِماشون بی قراره بی ق
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1)خاروجودم توتیای چشم توست...
***
2)بی چِمِــر نیشتِـمِه تِـه بوردِه راه رِه(معنی مازنی به فارسی:ب
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خارِ وجودم، توتیای چشم توست
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دل می خواهم های!
از این عالم که فقط
چشم نوش جان می کند
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دله غمیره ره ،ته پاره هاکن(مازنی)
دل غمگین وپربغض را تو پاره کن(فارسی)
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حاصله اَتِه عِمره خــونه دل کـو؟
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آ غصه برو مه دل هلا جا دارنه!!
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قِدرت خِدا رِ بِلارِه،زِمسون وسوز چِله
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دریا به عشق ساحل
به صخره ها می کوبد
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ابـــــرخســـــته ازغرّش
گشـــــــود
سایـــــــه ی آرامی بر
جنگل سروی!
ســروها اما
به بهـــ
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از الهه ی درون
موج شکنی می طلبم
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داس زدمُ با چیدنِ خرمن، لیره ها بردند چه کنم؟
جان وجامــم تــهیُ ،بهـــره ها بردند چــه کنم؟
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آی ناخدای سلولهای موّاج در دریای سرخ فام
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به دنبال ردپایی
درپس سایه ی سروی
همه وجودچشم شدم
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دلگیرم از روزگاری که
پیرانِ جوان
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بی شرم از، چشما نِ بازِ ستارگان
تیرِنگاه طلب کارش، بو
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دریا تنها یک شب اگر آرام باشد
هزارویک شب در من
می خروشد!
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