سه شنبه ۱۲ فروردين
اشعار دفتر شعرِ دفتراشعاردیزناب شاعر بهروز ابراهیمیان
|
|
دیگرهیچ بهانه ای برای نیامدن ندارد
|
|
|
|
|
آن چنان آرام وبی سروصدا
ازاین کوچه گذرخواهم کردکه...
|
|
|
|
|
نامه چه شدنامه کجارفت باز؟
آمده بودازرَه ِدورودراز
|
|
|
|
|
قلبِ من آیینهٔ اهل نیاز
قلب ِمن تک سجدهٔ وقت نماز....
|
|
|
|
|
توای خورشیدِسرمای زمستانم
بتاب ازلابلای پیکرِزخمیِ ایوانم...
|
|
|
|
|
دراین هوای سردرنگ
نیست نشان ،غیرِ جنگ...
|
|
|
|
|
چه آسان می شود پوسید وپژمرد
ویاهمچون گُلی دردست افسرد
|
|
|
|
|
این جهان درچنگ دژخیمان شده
گیرِیک مشت اَبْله و نادان شده...
|
|
|
|
|
کاش اینجاخانهٔ من بود...
دیوارهایش رنگی...
|
|
|
|
|
یک نفرشعرِمرامی فهمد...
اوکسی نیست ،بجزسایهٔ سرگردانم
|
|
|
|
|
کفشهایم پاره شد
این دلم آواره شد...
|
|
|
|
|
هرکوچهٔ تنگی که ازآن کوچه گذشتم....
|
|
|
|
|
مراباچشمان نازت آشناکن...
|
|
|
|
|
همگی همسفرِاین شهریم
همگی درگذرِاین بحریم...
|
|
|
|
|
گئجه دن صبحه قَدَر گؤزلریمی تیکدیم آیا...
|
|
|
|
|
کیستم؟ گم شده ای درمِه رؤیای سحرگاهانم...
|
|
|
|
|
اگربهاربیاید...
برایش اززمستان شکایت خواهم کرد
|
|
|
|
|
هرشاخهٔ این گلها...
باعشقِ توروییده...
|
|
|
|
|
توای نازنین دخترِبیگناه
چه معصوم وپاکی وزیبانگاه....
|
|
|
|
|
«یکباربیاوعاشقی کن
تلخ است ولی ضــرر ندارد »
|
|
|
|
|
برگ ریزان،پابرهنه بی امان
ناگزیرازما گریزان شدخزان....
|
|
|
|
|
جزگُلِ عشق ووفادردل نکار....
|
|
|
|
|
غزلی ازآن غرورت که پُرازشَرارباشد...
|
|
|
|
|
پناهم تویی ،راه گم کرده ام
|
|
|
|
|
کسی ازمن پرسید
جانِ من ،عمرچسان میگذرد؟
|
|
|
|
|
بوستانیست عجیب
روزگاریست غریب
ناله ای می شنوم ازگلوی چشمهٔ خشک
|
|
|
|
|
فصلِ سرمارفت وفصلِ نوبهاران آمده...
|
|
|
|
|
گوشم رابه کدام ترانه آماده کنم؟
لبم رابه کدام زمزمه عادت بدهم؟
|
|
|
|
|
دهنت شعروغزل هست ولبت مست ِسرود
|
|
|
|
|
من خاطراتِ خویش به دریانوشته ام...
|
|
|
|
|
گفتنِ این شعرم آمدناگهان
شهرِمازیباترین شهرِجهان....
|
|
|
|
|
بایدازسیطرهٔ مرکزدریارَدشد...
|
|
|
|
|
تاغزل هست وترانه همه جَستیم ای دل
تادوبیتی وچغانه، همه هستیم ای دل
|
|
|
|
|
دیری نخواهد پایید...
آیدآن زمانی که
تفنگهابشکنند...
|
|
|
|
|
برگ می ریزدخزان رابنگرید...
لحظه لحظه این زمان رابنگرید...
|
|
|
|
|
کوچه رابرف گرفته ...
چه سکوت است اینجا...
|
|
|
|
|
چه زیبامی تپد قلبی...
درآن هنگامهٔ پُرشوروپُرغوغا
|
|
|
|
|
«ای مادر»
دلم یک بوسهٔ بی تاب می خواهد
به تابِ گیسوانِ نقره فامت
|
|
|
|
|
لحظه هامی گذرند...
لحظه هارادریاب
|
|
|
|
|
غزلی تازه نویسم که پُرازگل باشد
درکنارش چمن وسوسن وسنبل باشد
|
|
|
|
|
باهم بازیهای دورانِ کودکی ام
نشستیم حلقه زدیم...
|
|
|
|
|
ای فرشته ٬معلّمِ ثانی...
رسمِ یاری مگر نمیدانی...
|
|
|
|
|
شاعرکه باشی...
سنگهای سرد وسخت راهم زیبامی بینی...
|
|
|
|
|
نبودی ببینی دلم شورداشت...
تپشهای بی نظم وناجورداشت...
|
|
|
|
|
وقتی بهارآمدودردشت ها بخُفت....
|
|
|
|
|
ما سهیمیم دروجودِ خدا
هیچکس نیست ازخدای، جُدا...
|
|
|
|
|
خواب دیدم که خواب می بینم...
دورِ خود من کتاب می چینم...
|
|
|
|
|
باورم نیست هنوز...صبح شده
صدای مؤذّنِ شهرپراکنده شده ازمسجد
|
|
|
|
|
هوا ابریست باران نازدارد...
|
|
|
|
|
ربّناخواندی ،صدایت بیبظیروبی مثال...
|
|
|
|
|
چون دفترِ عشق پیشِ خودبرچیدم...
|
|
|
|
|
باخودت تکرارکن...
گربخواهی دست یاری برضعیفان برنهی
|
|
|
|
|
خانه قلب من از خشت رفیقان برپاست ...
|
|
|
|
|
زشت رویی دشمنِ آیینه شد...
اودلش پُرازشرار وکینه شد...
|
|
|
|
|
سبدی شعر...
کمی شاخِ نبات...
|
|
|
|
|
گاهی بایدرفت بی صداوبی هوا دوربودازهرشلوغی وصدا....
|
|
|
|
|
غلاف کن تفنگ را.... دگرزمانِ جنگ نیست ....
|
|
|
|
|
روزگاریست خواب می بینم
شبِ تار،آفتاب می بینم...
|
|
|
|
|
من از بُتخانه می آیم تُراچه
|
|
|
|
|
توخودت شعرِدل انگیزِ بهاری وپُرازغنچهٔ ناز
وَه که چون فصل بهاری چه لطیف وطنّاز
|
|
|
|
|
شعر موجی درخَمِ آلاله ها ....
درمیانِ یاس ولادن ،لاله ها....
|
|
|
|
|
سفرخوب است بامن همسفرباش...
|
|
|
|
|
ازاین لحظه به بعد...
دلنوشته هایم را
روی سنگهامی نویسم
|
|
|
|
|
هزاران حرف دارم باستاره...
دلم ازدستِ بعضی پاره پاره....
|
|
|
|
|
سکوتم پرزفریاداست
وفریادم خموش اما۰۰۰
|
|
|
|
|
شبِ پاییزوسکوتی ست عجیب
ماه رامی بینم...
سایه رامی فهمم...
|
|
|
|
|
مرابه اوج غزلهای عاشقانه ببر
بسوی میکده با جام عارفانه ببر
|
|
|
|
|
سنبلی هست و من و یاسمنی
نرگسی هست وتو دریادمنی
|
|
|
|
|
نبودی ببینی دلم شورداشت...
تپشهای بی نظم وناجورداشت....
|
|
|
|
|
چشم زیبای بهارازانتظارت خسته شد....
دستِ پاکِ روزگارازهجرتوبشکسته شد...
|
|
|
|
|
چون جوان بودم پُرازشورونشاط
شادوخندان درخیابان وحیاط
|
|
|
|
|
بزن سازِحزین ای بار بُد پیشه
همان سازی که لیلی دربَرِمجنونِ خود می زد...
|
|
|
|
|
بر بلندای زمان پَرمی کشم تا بامِ عشق
دربلندای زمین ره می روم تاکام عشق
|
|
|
|
|
دلم یک روستای ساده میخواهد
بدونِ چشم وهمچشمی.....
|
|
|
|
|
آمدی جانم به قربانت ولی دیرآمدی....
|
|
|
|
|
مانده پنهان دردلم صد رازِمن
|
|
|
|
|
تودل انگیزترین شعرِجهانی
شبنمِ رویِ گُلی، آبِ پاکی وروانی
|
|
|
|
|
ازریشه شده فاسدوگندیده، خراب است
این کهنه درختی است که نمدیده، پُرآب است
|
|
|
|
|
ستاره هابدرخشید و آفتاب آمد
|
|
|
مجموع ۹۰ پست فعال در ۲ صفحه |