شنبه ۴ اسفند
اشعار دفتر شعرِ عاشقانه ها شاعر الهه نصیری زاده (وفا)
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حلقه ی موی مرا
دور انگشتت مپیچ
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خاموشی ات را تاب آوردن
سخت است عزیز من
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نه حساب سن و سال است
و نه حرمت موی سپید
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آهای پلنگ وحشی من
خوشبحال آهویت....
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مرا محبوس کن
در فشار بازوانت...
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چقدر هوس گفتن و شنیدن دارد
دلم با دلت....
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ساعت هاست
مقابل چشمانم
با خودت خلوت کرده ای و
"طاق باز" کتاب می خوانی....
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انتهای شب
وقتی همه چراغ ها خاموش است...
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من و تو
نیمه ی گم شده هم بودیم....
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من ، آن ماهی قرمز کوچکم
میان قلب شیشه ای تو
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آنقدر هرشب
با خیال تو
همبستر بوده ام که...
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سحرگاهان
کنار بسترت می نشینم و....
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می آیی انار ، دانه کنیم ؟
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برایت شالگردنی دراز بافته ام....
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مدت هاست
لب از لب باز نکرده ام...
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من ، روزی رها خواهم شد...
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لب هام که از خیسی لب هات سُر می خورد...
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گیسوانم را پریشان کرده ام...
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امشب ،
دکمه های پیراهنش را
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همچون شیری که
به وقت قدرت نمایی با آهویی
بازی ها دارد
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می گذاری
از" رگ گردن" ببوسمت ؟؟
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ازانتهای باغ پاییزی می آیی
بایک بغل نارنج
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مانع سر راه
همیشه ، سنگ جلو پا نیست
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