يکشنبه ۲ دی
اشعار دفتر شعرِ غزلیات شاعر اصلانی (امی)
|
|
من رشک می ورزم به درد دردمندان
|
|
|
|
|
این اسب جهان را که بود شاهسواری
|
|
|
|
|
رسد روزی که گیج از گردش آن زلف او مانی
|
|
|
|
|
تو چه دانی که چه ها بود در این حبّ نهانم
|
|
|
|
|
خرسند شود گر که دلم را ببرد
لیکن که فقط رنج دهد آن زیبا
|
|
|
|
|
به پایت سر نهادن فخر و ناز است
|
|
|
|
|
گر آن جمال مه بگیرند از تو روزی
|
|
|
|
|
مرغ مریض این قفس یاد تو هست هر نفس
|
|
|
|
|
هنر صید دل او اگرم بود...
|
|
|
|
|
چه بسا روا بود تا که دو چشم من شود کور!
|
|
|
|
|
جای و نشانش را بگو دارم هوای جستجو!!
|
|
|
|
|
همیشه خواب خواهم تا تو را در خواب بینم
|
|
|
|
|
الهی همچو من آشفته حالی نباشی کز حدیثم هم بنالی
|
|
|
|
|
تاب کمند زلفت را دل تاب نیست
|
|
|
|
|
مرد در بادیه آن تشنه درخت و نرسید
|
|
|
|
|
غرق خواهم شد از این درّ مذاب بیجا
|
|
|
|
|
درکم نکنی خودت که دلداده نبودی
|
|
|
|
|
ناله و فریاد دمی کاش مرا چاره بُدی
|
|
|
|
|
صبا یک بار اخبار مرا هم سویت آورد
|
|
|
|
|
عشق را باید نه در دل خانه جاویدان بود
|
|
|
|
|
از دور می تابد رخت ، دل را غم هجران بُوَد
کوه از فراق روی تو چون عاشقان گریان بُوَد
|
|
|
|
|
تاکه چشمم را گشودم اخم یار آمد مرا
|
|
|
|
|
هزاران چشم می بیند تو را...
|
|
|
|
|
بوی عطری است و دل مضطرب از بوی تو است
شاید او برده گمان بوی خوش روی تو است
|
|
|
|
|
زخم عشقی دارم و آن درد سودای تو را
مرهمش جوید دلم، روی فریبای تو را
|
|
|