يکشنبه ۲ دی
اشعار دفتر شعرِ غزل شاعر صادقي(آپو)
|
|
زنده برجانم ولیکن مرده از دلتنگیم
|
|
|
|
|
جان به قربان نگاهی که محبت بلد است
|
|
|
|
|
بی قراری ها کِشد آخر دلم را بر جنون
|
|
|
|
|
یک عده در این فاصله گفتند مفیدند
گفتند که فرزانه تدبیر و امیدند
|
|
|
|
|
ماچه یکرنگیم در صدرنگی خود با نفاق
|
|
|
|
|
خوش خیالی مال ماشد،بی خیالی مال تو
|
|
|
|
|
برون تابـد آنـی کـه دل می ستود
|
|
|
|
|
خوش باد شبی را که مرا خاطره ها بود
|
|
|
|
|
اگر شیمیایی چو جامِ میِ است
ز مستی بسی سینه سوزانده ایم
|
|
|
|
|
بی هوای تو نفس تنگ است و دل بیمارولنگ
|
|
|
|
|
کـی رسـد طـبـیـب مـا بر سربیمار؟بگو تا چه کنم؟
|
|
|
|
|
گوشهِ چشمی از او به غمزه جانی را برد
آنکه با عشوه سجل های بسی باطله کرد
|
|
|
|
|
آدمی در حـال ما امروز و فردایش یکیست
|
|
|
|
|
چون به خود می نگرم از همه بیگانه ترم
|
|
|
|
|
التماس ناکسان بی سر و پا بهر چیست؟
|
|
|
|
|
هیچ مردی مثل تو، از دردعشق آگاه نیست
|
|
|
|
|
خــود مـلـولـيـم از ايـن غـصـه و سـرگـرداني
قـصــه ايـ
|
|
|
|
|
در خلوت خود محو تماشاي توام
|
|
|
|
|
ماه من باش تا گم نشوم در شب تار
|
|
|
|
|
تشنه بودم من و لعل لب تو دریا بود
|
|
|
|
|
افسونگری چشم تو دین و دل من برد
|
|
|
|
|
روز من زیبا شود با دیدن رخسار تو
|
|
|
|
|
هــرکـه گـویـد عـاشـق اسـت و دل بـریـد از دلبرش
احـمـقـش پـنـدار! او جـز نـقـش یـک دیــوار نیست
|
|
|
|
|
يك نفس با تو نشستن از بهشت اولاتر است
اي نفسـهايـت ســبوي بـاده ام كي مي رسـي؟
|
|
|
|
|
در خـیـالـم عـیـدی مـن دیـدن روی تـو بـود
می شود آیا میسر؟یا خیالی بیش نیست
|
|
|
|
|
عـطـر عـیـد آمـد ز گیـسوی بـهار
مست شد گلشن ز صهبای نگار
|
|
|
|
|
تو بخندي همهِ روز وشبم نوروز است
ز غــم آزاد شــوم مــوقــع خـنـديــدن تــو
|
|
|
|
|
درمانده ام،اما دگر اصـرار ندارم
حس وهنري در دل وگفتارندارم
|
|
|
|
|
آمدي جانم فدایت،همچو باران برکویر
خانهِ دل شد گلستان غم زبن بر باد شد
|
|
|
|
|
دلتنگم اگر باشم و دلدار نباشد
شب آید و ماه من پدیدار نباشد
|
|
|
|
|
می شود امروزهم یک بـوسـه مـهـمانم کنی؟
جرعه ای نوش لبم بخشی و آن سانم کنی؟
|
|
|
|
|
خوب است که تو پیشمی و عالیم امروز
پرشورم و از غصه و غم خالیم امروز
|
|
|