سه شنبه ۴ دی
اشعار دفتر شعرِ نیمای من شاعر رویا ادیب (نازبانو)
|
|
دیدمش گفتم منم اما چرا نشناخت او
|
|
|
|
|
وقتی غزالی می رمد در قاب تنگ لاله ها
|
|
|
|
|
سر میگذارم دامنِ داروغه ی هُشیارِشب
|
|
|
|
|
شعر هم رگ میزند در محضر اعجاب غم
|
|
|
|
|
تا تفأل می زنی در محضر استاد عشق
|
|
|
|
|
لیلی قصه های من یک شبه پر کشید و رفت،،
|
|
|
|
|
در بستر بیدار شب ماه هلالی گم شده...
|
|
|
|
|
تا کجای قصه باید درد را همراه شد،،،
|
|
|
|
|
نسلی از آدم نمانده، دودمانی سوخته،،،
|
|
|
|
|
رفتی و من جامانده ام، اینجا هوا بارانی است
|
|
|
|
|
هیچ کس وسعت اندوه مرا درک نکرد..
|
|
|
|
|
یوسف لقای شعری، آهسته تر گذر کن
|
|
|
|
|
در گلویم بغضی از اندوه یلدا مانده است
|
|
|
|
|
کی به پایان می رسد، این گم شدن این جستجو؟
|
|
|
|
|
لاعلاجِ درد را، با ناله سودا میکنم...
|
|
|
|
|
نگو باران من از باران گریزانم
|
|
|
|
|
چه زیبا میشود وقتی دوباره می رسم با عشق،،،
|
|
|
|
|
با ذوق سمتت آمدم، با طعنه می رانی چرا؟
|
|
|
|
|
"زیر باران ،دیدن دلدار می چسبد عجب"
|
|
|
|
|
"هوا خواه توام جانا ، و می دانم که میدانی "
|
|
|
|
|
ساده می گویم عزیزم دل بریدن ساده نیست
|
|
|
|
|
آخر کجا گم کردمت ،باید که پیدایت کنم
|
|
|
|
|
نوشتم خط به خط باران ، که بغضی در گلو دارم
|
|
|
|
|
چشم من چشم تو را دید ولی دیده نشد
|
|
|
|
|
باران کمی آهسته تر، اینجا کسی در خانه نیست
|
|
|
|
|
بارها عشق مرا، وابستگی تفسیر کرد
در گلویم بغض درد آلودی از غم گیر کرد
|
|
|
|
|
دردا که عشق آتشین ،جز خون دل حاصل نشد
|
|
|