پنجشنبه ۱ آذر
اشعار دفتر شعرِ سقطِ سکوت شاعر مریم کاسیانی
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وطن آرام در آغوش حماقت می سوخت
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فقر روزی بی حیا شد عشق را آواره کرد
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به این علاقه ی مجروحِ بی وفایی لعن
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لعنت به مشتِ خاکی و بی چیز زندگی
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باور از بودنِ خود سیر شود می میرد
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تنهاترین خیالِ خوشِ جستجوی من
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چشمِ حسودِ پنجره را کور کن وَ بعد
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ماتم گرفته جنبشِ واژه برای زیست
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شعر
ادامه ی نگاهِ توست...
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پاییز می شود همه سالم بدون تو
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کم زرد بکش بر رخ من حضرت پاییز
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برایم دارِ غـــم بر پـاســـــت بی تـــــو
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فــارِغ زِ اَبـــری طَـعـنه زَن بـــارانِ مِـهـــرت را بِـبــار
اَز چَترِ غم چین عُقده ای وقتی ک
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ذبح کردم پای عشقت آن غرورم را ببین
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نازِ آریایی کن ؛ با سَبویِ لب هایت
مِی بِنوش و نوشَم کن ای یگانه ؛ در یلدا
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بیقرارم به نَفَسهایِ قرارَت بَغَلم کن
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قَزَح هم قوس میگیرد منم،پایان که می خوانی
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سراسر خلقتت را مرحبا،ای نوحِ نامیرا
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آهنگِ قلبِ من به نوایِ تو کوک نیست
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