شنبه ۲۹ دی
اشعار دفتر شعرِ دیوان خزان شاعر امیر حسین حسین آبادی
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از زندگی کردن مرا تو سیر می کنی
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در بین سایه ها آرام می روی
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نشسته در گذار عمر چه تند می رود زمان
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جای پای اولین خاطره در یادت هست؟
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صبح غمبار من آن بود،که تو ناگاه رفتی
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بذر شعری را درون مرده خاکی کاشتند...
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من هنوزم شبها،همدمم تنهایی ست
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این شام سیه که من در آن زندانم
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یک روز آمد در دلم،از عشق در دل خانه کرد
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شب شد و بار دگر با یک غزل...
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رنگی در این سیاهی،ناید به من هویدا
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آهی فراتر از غم، جریانِ این غزل شد
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آن گوهرِ جاویدان گردیده به من فانی
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دردی مرا گرفته نامش بُوَد جدایی
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روزگاری می رسد این دیده را گریان شود
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نغمه ی باران چه خوش آهنگ زند بر شیشه
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مرغی ز قفس پر زد و زینجا به هوا رفت
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نوری ز عمق این شب سوزی به نقش این تار
ابری ز آب دیده ماهی ز روی این یار
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سازی بزن نگارا کوکی بکن به جانم
شاید تو هم بدانی دگر توان ندارم
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پدید آمد غم و اندوه دگر باره به جان ما
چو دل داغش فروزان شد به سودای نهان ما
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آرامشی که از تو بر جان من رسیده
گو بهره چه بسوزد از سوز آب دیده
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عارفا معرفت از عشق چه آموخته ای
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باز آمدم به سویت ای آیت خدایی. حیفا که دل بسوزد باز هم اگر جدایی
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مرغ خزان حال ما گرچه زبانش خفاست
لیک اندر دلش شرح هجری رواست
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