يکشنبه ۱۹ اسفند
اشعار دفتر شعرِ جزر و مد شاعر پانته آ عسکری
|
|
دوباره خاک، هزاران ورق شکوفه سرود
|
|
|
|
|
منم و کوک سه تاری که عوض باید کرد
|
|
|
|
|
دف به کف، رقص کنان، مست و غزل خوان آمد
|
|
|
|
|
خورشیدِ منی و کهکشان ها
فانوس به دستِ جستجویت
|
|
|
|
|
در شیشه ی شعرِ گل، شراب است
|
|
|
|
|
آب میشه قطره قطره، قندیلِ غم
|
|
|
|
|
سوگند به لحظه ای که خورشید دمید
|
|
|
|
|
مسیرِ قایقِ بی بادبان را
به موجِ گیجِ دریابار نسپار
|
|
|
|
|
برگِ تری نمانده بر، شاخِ شکسته در خزان
خشک نمی شود چرا، برگِ دو چشمِ عاشقان
|
|
|
|
|
در سینه ها سرابِ عطش موج می زند
|
|
|
|
|
تو گلوم جنگلِ شعره.. پر از آوازِ بهارم
|
|
|
|
|
زیر شمشیر غم ات عشق به خاک ام انداخت
|
|
|
|
|
روحِ زمین خورده ی باران شدم
|
|
|
|
|
بر شانه اش پرنده ی شعر آشیانه ساخت
|
|
|
|
|
پشت پلک ام دریچه ای مخفی ست
|
|
|
|
|
اعتمادی به قاصدک ها نیست
بی خبر گرمِ رقص در بادند
|
|
|
|
|
دریا شدم که تو باران کنی مرا
|
|
|
|
|
ای خیره خیره خیره نگاهت ادامه دار
|
|
|
|
|
مرا احاطه کرده ای شبیه شب که آه را
|
|
|
|
|
برایت غزل می نوشتم که باران گرفت
|
|
|
|
|
شاهِ فرخنده پیِ فرخ فروردین ماه
|
|
|
|
|
آوازِ کبوتری که حلق آویز است
|
|
|
|
|
آرام رسیده ام به این اطمینان
|
|
|
|
|
صد جوی، روان کردی از چشمه ی دریاجو
|
|
|
|
|
ای کعبه ی من مردمکِ چشمِ سیاه ات
محرابِ پر از آینه، پیشانیِ ماه ات
|
|
|
|
|
از نیمه راهِ عشق.. پشیمان.. گریختیم
|
|
|
|
|
به محکمات کلامی که زیر این قسم است
دلی تپنده تر از نبض صبح در قلم است
|
|
|
|
|
آن روز که عشق از آسمان می بارید
|
|
|
|
|
خانم بخر.. بخر آقا.. حراج شد
|
|
|
|
|
باور کنم برابرِ من ایستاده ای؟
|
|
|
|
|
آغوش گشود.. دم نزد.. تیر رسید
|
|
|
|
|
نزد من آ.. طور در آتش من
پیشتر آ.. شعله بگیر از تنم
|
|
|
|
|
تصویر پاک و روشن ات آن سوی پرده ها
|
|
|
|
|
از خاتم دینِ حق، پیمبرتر شد
|
|
|
|
|
زیبای پر نگار.. به جایم سخن بگو
|
|
|
|
|
ایوان و عطر چای و دو فنجان.. تمامِ شب
|
|
|
|
|
پروردگارِ بیستون بودی
دنیا مجاب ات کرد نان از عشق..
|
|
|
|
|
سایه ات انگار، یک لحظه.. ولی نه نیستی
|
|
|
|
|
دل بر نتوان گرفت از این یک دلبر
|
|
|
|
|
گفتی به من خبر بده از حال و روز خویش
|
|
|
|
|
دو تار بید پریشان چکامه خوان شده باز
|
|
|
|
|
نام ات به جای قافیه تکرار می شود
|
|
|
|
|
از داغِ نگاهِ لاله بر چشمانت
|
|
|
|
|
نصیحتم بشنو دل به هیچ کس مسپار
|
|
|
|
|
دیدی که هوس چه بر سر عشق آورد؟
|
|
|
|
|
افتاده به دامِ شادی و غم تا چند
|
|
|
|
|
ای روی آفتابِ تو ام آرزوترین
|
|
|
|
|
آسمانی شعله پوش از قهرِ سرخ
ریگ زاری جرعه نوش از زهرِ سرخ
وزنِ سنگینِ نفس.. آوازِ مرگ
فوجِ کرکس..
|
|
|
|
|
نخواب، صبحِ عبور از بهارِ بالیدن
بهار، فصلِ سلام است
|
|
|
|
|
بعدِ تو حرف به حرفِ غزل ام بارانی ست
یک جهان، ابر در این حنجره ام زندانی ست
|
|
|
|
|
من تو را با واژه های آتشین خواهم سرود
شعله باران شد جها
|
|
|