دوشنبه ۱۰ مهر
اشعار دفتر شعرِ غزلیـــــات 13 شاعر یونسی یونس
|
|
اگردستم رسد برتارِمطربخانۀ مویت
|
|
|
|
|
خبرت هست مرانسخۀ درمان شده ایی
|
|
|
|
|
شرحِ دل چون با زبانِ خامه هم پیمان شود
|
|
|
|
|
دیشب از کوچۀ مهتاب گذشتم بهوایت
|
|
|
|
|
شده ام خرابِ رویت نظری بسوی ماکن
|
|
|
|
|
قاب چشمت بومِ قلبم را مصوّر میکند
|
|
|
|
|
آنقدرکامده ام سمتِ توبا ذکرِ دعا
|
|
|
|
|
قصدکردم برسم بهرِ زیارت چکنم؟
|
|
|
|
|
هرکه معشوقش بُوَدغیرازحسین بیگانه است
|
|
|
|
|
یاد تو هرلحظه میآیدسراغم نازنین
|
|
|
|
|
درونِ قابِ چشمانم ترا دلخواه میبینم
|
|
|
|
|
به دامانِ غزل هرشب زهجرانت پرشانم
|
|
|
|
|
ای که هرشب تاسحرمهتاب رویای منی
|
|
|
|
|
گفتم مگرلیلاشوی،مجنونِ دنیایت شوم
|
|
|
|
|
دوش مغلوبِ دوچشمانِ سیاهت شده ام
|
|
|
|
|
دیشب صُوَرِ ذهنِ من از رنگِ اَمَل بود
|
|
|
|
|
درجلگۀ سردابِ توعبّاس تماشاست
|
|
|
|
|
چوخیالِ دیدنت رابه سرم نشانه دارم
|
|
|
|
|
کاش میشد که دلت با دلِ من تا بشود
|
|
|
|
|
مژده ای محرم دل بوی خوشِ یا آمد
|
|
|
|
|
شیون از هجرِ تو برخاست سبب فاصله هاست
|
|
|
|
|
رفته از دیده و دل یار وفادار نبود
|
|
|
|
|
بر لوحِ دلم رقصِ قلم زد به نشانه
|
|
|
|
|
اربعین با دلِ بشکستۀ ویران چه کنم؟
|
|
|
|
|
مرا یک شب به مانندِ اناری دانه ام کردی
|
|
|
|
|
تو که رفتی ز بــرم دل به تکــاپــو افتاد
|
|
|
|
|
دوش در وقتِ سـحـــر زمزمه با قـرآن بـود
|
|
|
|
|
تقصیرِ دلم نیست که مجنونِ تو هستم
|
|
|
|
|
خبر از دلم نداری به هوای دلــگــــــــــــشایی
|
|
|
|
|
سردار سرِدار بهوش آمده بودی؟
|
|
|
|
|
تو که سرزمینِ دل را به فراقِ غم شکستی
|
|
|
|
|
تاری از مویِ کمندت در کمندم میکند
|
|
|
|
|
خرمــنِ گیسوی تو دل را ز دنیا می برد
|
|
|
|
|
غــدیر خم ترا منزلگهِ دلدار می بینم
|
|
|
|
|
گفتـــگوی اولین دیدار را یادش بخیر
|
|
|
|
|
شکلِ تندیسِ تنت هرشب شده رویای من
|
|
|
|
|
دلبرا با قهر کردن طرد و مسکینم مکن
|
|
|
|
|
روزِ اول عاشقم کردی مرا با اقتدار
|
|
|
|
|
کاش میشد با تو بودن را شبی احیاکنم
|
|
|
|
|
دوش در حاشیه ی کوی ظریفان بودم
|
|
|
|
|
آرزو دارم شبی را سر کنم در کوی تو
|
|
|
|
|
ای یارِ بی نیازم شیرین و سَروِ نازم
|
|
|
|
|
ای که با یادت چنان آشوب برپا کرده ایی
|
|
|
|
|
خمِ رخشانِ دو گیسوی تو عینِ سحرست
|
|
|
|
|
پریشانم مکن بانو که امشب قصدِجان داری
|
|
|
|
|
زائری دلخسته ام پابوسِ رویت آمدم
|
|
|
|
|
در نیــمه ی شب نقـشِ تو در سینه عیانست
با یادِ تـــو هــر لحـظه دلـــــم در نَــوَسانست
|
|
|
|
|
وای اگر یک شب نیایی در برم جان میرود
مرغِ جان پر میکشد تا مرزِ ویران میرود
|
|
|
|
|
یک شب تو مرا با لبِ خود وسوسه کردی
|
|
|
|
|
شبی در کُنجِ خلوت باخیالِ یار میگفتم
|
|
|
|
|
مَـــنِ سودا زده با عشقِ زلالت چه کنم؟
|
|
|
|
|
ای یارِ دلارای من ای یارِ جهانم
|
|
|
|
|
صورتم فصلِ خزان شد نو بهارم به کجاست؟
|
|
|
|
|
تابِ گیسوی کمندت دلبربایی میکند
|
|
|
|
|
باورم نیست چرا دلبرِ محبوب و قشنگ ؟
|
|
|
|
|
چنین بود جنگِ حسین راز بود
|
|
|
|
|
تو لبت قندِ عسل باشد و من بیمارم ...
|
|
|
|
|
جانا تو بیااز لبِ تو کام بگیرم
|
|
|
|
|
اعتنا ناکردنت مانند نیشِ عقرب ست
|
|
|
|
|
دوش در خلوت رویای شبم بوی تو بود
|
|
|
|
|
شبی از بیقراری رو به سوس اسمان کردم
|
|
|
|
|
چو شبی درانتظاری ننشسته ایی چه دانی
|
|
|
|
|
تازه گیها عشق می آید چه اسان میرود
|
|
|
|
|
دلبر آمد در سحرگاهان صدایم کرد و رفت
|
|
|
|
|
دوش در رویای شیرین ماهِ منظَر دیده ام
|
|
|
|
|
برده هوش از سرِ من یارِ غزلخوانم کو
|
|
|
|
|
روزگارم را ببین با من عداوت میکند
|
|
|
|
|
دوش در نزدِ خیالم چه تماشایی بود
|
|
|
|
|
ای که هر شب تا سحر مهتاب شبهای منی
|
|
|
|
|
ای دلبرِ غمّـــــــــــاز سخن با که بگویم ؟
|
|
|
|
|
عهد کردم که دگــر لیلی و مجنون نَشَوَم
|
|
|
|
|
تضمین :
نترسم که با دیگری خو کنی
|
|
|
|
|
ای زلـــــــــــــفِ مُسَلسَلت بــــــلای دلِ من
|
|
|
|
|
مـــردمِ چشــــمانِ دلبـــر سِحر و جادو میکند
|
|
|
|
|
یا ربا دلبر ما روی میسّر نکند
|
|
|
|
|
غمِ عاشق بجز درد و جفا نیست
|
|
|
مجموع ۸۷ پست فعال در ۲ صفحه |