يکشنبه ۲ دی
اشعار دفتر شعرِ اشعار لري شاعر عليرضا حكيم
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غزل مَس دِ شِراوِ چَشّیاتَه
(غزل مست از شراب چشمهایت)
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قُشی اوما نِیا سَر بونِ شعرِم
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واردِ اَفتاو مووَه بییار ، زنِ لُر
مِیپوشه دامونِ گلدار ، زنِ لُر
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کِلهَشیرو همه حُفتینَه اِمشو
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وِ گوشم ميايه صدا پا بهار
(صداي پاي بهار به گوشم مي رسد)
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دلِم خوش بی كِ غمخوار مِه بويي
رفيق و هُمدم و يار مِه بويي
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تو که نویی دلم بیماره هر شو
غم دنیا وِ ریش آواره هر شو
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به دریا در صدف دُر آفریده
به صحرا خار و اُشتُر آفریده
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يَه چَن وقتَه خَور نارِم دِ حالِت
چَشِم روشِ نِمووهَ وِ جمالت
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مِه دارِ تشنه و حُشکی،تو شاهِ ایلِ بارونی
مَگر تو وا زُلالِ خُوت،تَشِ تِشنِیمِه بَنشونی
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سال تو هپلي هپونه پوپلوني پر طلا
(اي مرغ كاكلي پر طلايي سال تو هرج ومرج است )
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خیالم همسفر بی وا خیالت
(خیالم همسفر با خیال تو شد)
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دلِم سی دییِنت گل کِرده اِمروز
(برای دیدن تو درخت دلم گل کرده است)
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گل یاسِم وِ باغم کی مِیایی
(ای گل یاسم چه موقع به باغم می آیی؟)
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گل نازِم دِ بس که تو رنگینی
(گل نازم از بس که زیبا هستی)
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تو که بیخود دِ مه دلگیر بییه
(ای کسی که بیجهت از من دلگیر شده ای)
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خیال تو دِ قلبم کرده لونه
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