جمعه ۲ آذر
اشعار دفتر شعرِ باغ پاییزی شاعر پاییز
|
|
روي خوبي هاي تو من باز بد كردم ببخش...
|
|
|
|
|
سكوت ميكني فقط به حس عاشقانه ام...
|
|
|
|
|
بخوان شعري ز دل اي دل كه در دل جا شود امشب...
|
|
|
|
|
جاي تو در حصار نفس تنگ ميشود
بايد كرانه اي همه قابت كنم تورا...
|
|
|
|
|
بيا پاييز دلخون را وزيده باد بي مهري
سپر كن شانه هايت را كه در طوفان غم تنهاست....
|
|
|
|
|
اي كه مردي ز تو معنا شده مردي مردي
هردم از مردي خود بازنگردي مردي...
|
|
|
|
|
چه زيبا صبح روزي كه تو يادت ميكني مارا...
|
|
|
|
|
در اين سكوت زمان دل نشانه ميگيرد
به شوق ديدن رويت بهانه ميگيرد....
|
|
|
|
|
رسيده از تو به من روزهاي دلتنگي
دگر نمانده مرا صبر و ناي دلتنگي....
|
|
|
|
|
در خلوت تنهایی یک مرد غریبی
یک شب نگران آمد و جا کرد غریبه...
|
|
|
|
|
امشب از حادثهء تلخ شب دون آرام...
|
|
|
|
|
آرزو دارم شبی با بوسه سلطانت شوم...
|
|
|
|
|
نگرانم نگران-نگرانم نگران-نگرانم نگران
این همه مهر و وفا-تو چرا با دگران-نگرانم نگران...
|
|
|
|
|
پنجره ای گشوده ام به روی طاق آسمان...
|
|
|
|
|
گوزه لیم گل بو قدر ائتمه ملامت گئجه لر...
|
|
|
|
|
سحر کی میشود امشب در این مهجور شیدایی....
|
|
|
|
|
آه تو کردی غروب و من خزانم شد پدر...
|
|
|
|
|
در گوش نازدانهء خود قصه می سرود
آری صدای عشق تو در گوش می کشید
با خط و خال تیره که چون روزگار
|
|
|
|
|
بهار عمر من بی تو شبی پاییز خواهد شد
شقایق های احساسم ز خشکی ریز خواهد شد...
|
|
|