شنبه ۱ دی
اشعار دفتر شعرِ حریر خیال شاعر پروانه آجورلو
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من زنم! آه و حسرتم مونده...
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این ــ من ــ گمگشته در صحرای بی پایان وهم...
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شاید تمام مشق همزادم غلط بود...
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شاهدم آئینه های روی دیوار است و بس...
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ولی سرکش تر از آنم برای بردگی کردن
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کم کم برای سوختن آتش به پا کردی؟
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معشوق شعر من شده ای ای تمام من
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ما رهگذرانیم در این ظلمت دوران...
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اشک های دلتنگی چو شبنم به روی گلبرگ است..
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عطر نابت بوسه ات جا مانده در ایوان ما..
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همیشه خنده به لب با ترانه می گریم
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عمق چشمان من همچو گرداب...
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از جنون و عاشقی ترسیده ام
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ای تمام زندگی! با تو جنونم دیدنیست
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عاشقی یعنی نوشتن از تو و خندیدنت
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من شاعر چشمان سیاهت شده ام...
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این اضطراب، با خفقان می کشد مرا...
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همنفس مانند من هرگز کسی شیدا نشد
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می نویسم پری ام، عاشقم و دلتنگم...
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گاهی این دیده پر از دغدغه ی دیدار است...
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سرک کشیده دلم در هوای چشمانت
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از عطر تو دیوانه شدم لحظه ی دیدار
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پر پروانه شکست از ترک آینه ها...
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این فریبا بودنت دل را به یغما می برد
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گفته ای موسیقی هر شب تارت شده ام...
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دریای دلم از غم تو طوفانیست...
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