دوشنبه ۲۸ آبان
اشعار دفتر شعرِ دفتر تمرین شعر شاعر محمودرضا رافعی (رافع)
|
|
اگر در تاب بازی ها
دو دل هستی که برگردی
|
|
|
|
|
سایه روشن :
صورتگر من ، نقشه ی جانم توبکش
نقاش تویی ، نقش جهانم توبکش
|
|
|
|
|
گر سیر کنی هماره در رنگ غروب
... و گبه ی دست باف توست
|
|
|
|
|
آفتابِ امروز گفت
نوای شعرت دوا گشته
|
|
|
|
|
داستانک پونه ی خشک
برداشتی از یک خاطره ی واقعی
|
|
|
|
|
گل ، در فقر بی آبی ، رنگ و بو نمی بازد
|
|
|
|
|
این بهانه چیست او از دم ، ستاره می زند
|
|
|
|
|
عشق گفت
تا گل بروید از دلِ سنگ
|
|
|
|
|
هر ترانه با هفت ، ترانه است
هر رنگ نیز .....
|
|
|
|
|
دلِ ظرفِ سیاه
بشوی ، دل را
|
|
|
|
|
بسانِ جوجه مرغابی
قباء سبز
|
|
|
|
|
... کنم ، روشن شبت را
....... بارِ هم جا کنیم
|
|
|
|
|
به خواب دیدم که بر فرشِ سلیمانم
|
|
|
|
|
بانگ فراق زند عیان
نیک ، لیک
|
|
|
|
|
کوچه باغم ، تنگ راهی خندون
|
|
|
|
|
خاطره ی یار همی رایحه ی یاس اوست
...... سرد آغوشم کشی
|
|
|
|
|
باید ببینی ایام
باران و برف هایت
|
|
|
|
|
نگاهت در خزان بینم ، چکامه ، ای نکو پندار
|
|
|
|
|
دیدگان ، با سوزِ دل ،
تنها جاری می شود
|
|
|
|
|
آسمان بودیم ، زگلخانه برون انداختند
|
|
|
|
|
طوفان گرد و خاکی نیست ،
برگی را برقصاند
|
|
|
|
|
نسلِ ما بود حکم ، آداب پدر
این دم است فرزند سالار پدر
|
|
|
|
|
نفیر
به نجوا گفت بلوغت ، توشه ای آر
زَر و جاه ،
|
|
|
|
|
گویند قصه های ما ، هاله ای ز بیداریست
رویایی که می بینیم ، از وقایعِ جاریست
|
|
|
|
|
در دشتِ چمستان ، موی بوری دیدم
|
|
|
|
|
خُرده گرفت به دریا ، کوهی
|
|
|
|
|
فال آمد ، قلندر محفلی باشیم
|
|
|