جمعه ۳ اسفند
اشعار دفتر شعرِ باریکان شاعر فرهنگ باریکانی (صالح)
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که طاهر سالهایی در سفر بی
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حسرت عشقت بدل ماند و قرار از دست رفت
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حسرت عشقت بدل ماندو قرار از دست رفت
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مثنوی سازم من از این هفت بند
پند خوش دارم، ندارم من گزند
صالح این دفتر نمی گردد تمام
تا بیابد
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ناله ی نــی با دعا همساز کن
ربنـــــّا را بـی سخن آغــاز کن
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به تمام ذوق مستی به همه جمال هستی
شده آن طریق صالح همه شوق حق پرستی
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ساقی بیار ساغر اردیبهشت را
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آمــــد بهــــار خــّرم و گلـها جــوان شدنـد
گلــها به باغ بـار دگــــر میهمـان شدنــد
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عید آمد و خنده بر رخ عالم زد
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مـا را ز کـوی میــکده داءم صـــدا کنند
این لولیـــانِ مست مــــداوم نــدا کنند
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تو نه مثل آفتابی که چنــان فرود دارد
نه هلال ماه مانی که سر سجود دارد
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عجــب تـلالــــؤ نــوری از آسمــــان آمـــــد
عجــب کـرامت و شوری به ارمغــان آمــد
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بمناسبت رحلت جانگداز فخر عالم امکان حضرت محمد مصطفی (ص)
شب سعادت احمد ،شب وفـــــات محمـد
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فـصل پــــاییز گشت و فصل خزان
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حسین ای شهنشاه ظالم ستیز به پیش پیمبر تو بودی عزیز
اگر دست زهرا نوازد سرت
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در غدیر خم چه پیش آمد
بر سرآیین و کیش آمد بگو
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عید قــــــــربان راعـــــــزای امت حق کرده اند
ک
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شعر ورد سحر
تقابل با تصنیف چهره به چهره رو به رو
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هوشــــــــــمـندان تفاوتی نکند
عمر برگ و حیات هر انسان
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لیله القدر است امشب در حریم کبریا
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غنچه لبخند زده بار دگر تکراری
کن تاّمل غزل و قافیه خندان را
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از نو بساخت شاهد و ساقی حیات را
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بشنو از دل چون حکایت ها کند .......
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عاشقان مژده دیدار به صالح دادند
اینچنین مژده زعشّاق مبارک بادم
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مرا شیــدا و رســـــوا کردی ای دل
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مطـــرب عشق عجب ســـاز و نــوایی دارد
در طَـــربخــانه ی دل حـــال و هــوایی دارد
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عید آمد و خنده بر رخ عالم زد
احوال زمین و آسمان بر هم زد
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صالح بهار خنده زد و خالقش ستود
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شدم با عاشِقِی همسر، غزل دیگر نخواهم گفت
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دل بردی از من تو تنها، ای عشق افسونگر من
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صالح هزار نکته بباید نوشت تا
تکمیل گردد این غزل ناتمام ما
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تو نه مثل آفتابی که چنان فرود دارد
نه هلال ماه مانی که سر سج
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دست بری بر دعـــــــا، نکته ی دیگر مپرس
دل فکنی بر قضا
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به چه فرخنده شبی بود و مبارک سحری
ملک و حور به رقص آمده با جلوه گری
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صالح این طوق عبادت ،تو به جان بر تن کن
چون تو را سود کند ،هیچ به جانان نفزود
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بـــــــرخیز و صــــالحا قــــدحی پر شراب کن
کانجا به هیچ می نخرند های و هوی ما
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بمناسبت رحلت جانگداز فخر عالم امکان حضرت محمد مصطفی (ص)
شب سعادت احمد ،شب وفـــــات محمـد
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زینب ای تــو قهــــــــــــرمان کربلا
ای به هر درد و م
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جامه سبز تو را دیدم و گفتم چه عجب
نفس باد بهار آمد و گلها به طـــرب
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ای که در مسلک رندان تو یکی باشی و بس
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تو ثـــــــــــــــار الهی در حضور خدا
به هر دو جهان گشته ای مقتدا
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اراده نموده است پروردگار
.......
حسین است سر حلقه روزگار
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من ملک بودم و فردوس برین جایم بود
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در غدیر خم چه پیش آمد بگو بر سر آئین و کیش آمد بگو
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در نهانخانه دل نقش رخ یاری هست
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آن سرزمین که ز عشاق جان گرفت
مشهور گشت و لقب طالقان گر
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اللَّهُ نُورُ السَّمَاوَاتِ وَالْأَرْضِ مَثَلُ نُورِهِ كَمِشْكَاةٍ فِیهَا مِصْبَاحٌ الْمِصْبَاحُ فِی
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لحظه را غنیمت دان ،چون دگر تو نتــوانی
عمر رفته چون طی شد،آن تو باز گردانی
حاصلش حیات
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عید مبعث بر همه فرهیختگان شعر ناب مبارک باد
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