دوشنبه ۱۳ اسفند
اشعار دفتر شعرِ سورنا غزل شاعر آرمان طاهری
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زِ مستان هرکه را دیدم نظر کردند تورا یک دم
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فال حافظ را گشودم غم مخور آمد ولی...
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عاقبت من را کشاندی رو به مستی...🥀
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نگاهت وعده ی عشق است چو اسفند
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چون زُلیخا میشوم در شهرِ خود رسوا بکن
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لیلا دِگر از آه و از نفرین نمی گویم
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هنگام سحر ماه شبم بودی و افسوس
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به غزالَم نرسیدم و غزل شد هُنَرَم
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گفتی ننویس از غم و اندوه و دلِ زار
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نجاتم ده!در آغوشت پناهم ده
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چه کردم که مرا مبتلا به غم کردی؟
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خنده اَت پر بزند چون دلِ بشکسته ی من
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جُرعه جُرعه شعر شده اَم در میان خنده اَت
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از تمام شهر و این بازیگران بد نقاب
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احوال تو آنگونه که بود،هست نِگارَم؟
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مشغول تماشای تو بودم، مجری خبر گفت
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چند بیت غزل مانده و چند تکه ی آوار
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برای خسته دل باید چون یک آشیان باشم
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لیلایِ من تنها نرو این جاده دلگیر است
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عشقِ چون یوسف و یعقوب رسیدن دارد
شعر:آرمان طاهری
دکلماتور:وحید امیری
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