جمعه ۷ دی
اشعار دفتر شعرِ باران احساس شاعر سید راشد سید زاده
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به دانشگاهِ چشمانت شدم مشروط هر ترمی
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گلشنی خزان دیده در بهار پاییزم
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دلبری ات قلب شاعر را هراسان می کند...
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گاه گاهی هم برایم دل نوازی لازم است
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یک سبد آرامش از قلبِ خدا دارد ببین
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بوسه ها در لحظه افطار یادت مانده است؟
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آن پیامبر رحمت کرده دل چراغانی
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طوفان اشک های دو چشمم اثر نداشت...
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شیرینیِ لب های تو آغشته به قند است...
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این کویری خشک قلبم غرق و بارانی شده
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زمانی می گشاید هم به رویم عشق آغوشی
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که در اعماق هر شعرم امیدِ مُبهمی دارم
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من گشته ام در شهرها دُردانه ای نیست...
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از جانب چشمان تو تخریب چه زیباست
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ماه بعد از دیدنت ای ماه من در خواب شد
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از من کسی دیوانه تر پیدا نخواهد شد
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پیچش موی سرت را دوست دارم عاطفه
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ملتی وزین کرده ست آن امام روحانی
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آهو شکار شیر تو هستم قسم پَری
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پیشِ تو ماهِ آسمان زنده به گور می شود...
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