چهارشنبه ۲۸ آذر
اشعار دفتر شعرِ عشقنامه شاعر علیرضا مرادی( مراد )
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باور کس، از بدش بدتر کنم
خاطر تو، این دلم پر پر کنم
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مُلک دنیا برود دخمه گورت بنهند
رفته آن یار نکو، همدم مورت بنهند
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بلدی تکیه کنی، بی منِ غمخوار چرا
تو انیس دل مایی، تو و این غار چرا
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خوردی عسل نوش جانت نه جُستی حال ما
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نوش دارو دِه، کُشت زهری که جامم ریخته ای
می کشی کُش من که پیشتر به پایت کُشته ام
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سَلسَبیل و آن چِشمه آب حیاتی دلم تو
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دِلا، دِل دَر دِل، دِلبسته دِل دَریایی دِلدار
دانی دِلا، دَرد دوری، دِل دِلخسته دیدار
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نازنین مه اختر و گُل پیکر من
لیلی منی یارا، قلبِ لَشکر من
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سرد نشو خاک ز طُره جان من
لا لا بخواب گسستهِ گُل گلزار من
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کفترِ جَلد توام جای دگر چیست مرا
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نازنین رعنا شوریده و شیدای من
سپهر بویه سایه بخت و همای من
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آن دل که نازنینی دل به جویایی توست
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این در را که به قفلش تو محکم بستی
یاد داری کلیدش را خودت بشکستی
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سینه را به دردش انبان حرف است
مرحم دل را، مهر نازنین دلدار بس
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نیم رخ ازچشم و روی یار من
غم به چهره از جسم عذار من
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مس را به طلا آبدیده کنی، جام طلایش نشود
هر دوست داشتنی که، دلباخته عطشان نشود
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بی وفا نامهربان بودی و دیر آمدی
سالها ز برت هی سوختم، حالا چرا
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گل به چهره، نازنین رعنای من
گل ستانم از برایت لیلای من
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جانانه این لعل، چو سوارش بفشارم
دریایی و من چو قطره بارانم ای دوست
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نازنینا آنچه بینی مینویسم من دفتری
لطف از اوست ارزانیم داشته اختری
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