جمعه ۳۰ شهريور
اشعار دفتر شعرِ نسیم گلشن شاعر حسن مصطفایی دهنوی
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باد نوروزي وزيد ، اي ياوران عيد آمده
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خداوندا چرا خلقت به من گرديده اند بد دل
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هـمان راه مسلمانـي اگـر بـهر تو دشــوار است
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خداونـدا چرا دنيـا به من در حال جنگ است
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برادرجان بدقت بين كه آسايش به هرفردي نمي سازد
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طريق كار اين دنيـا ، مدام افـيونگري باشـد
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هر كس كه از اين دنيا، در مرحله ي شادش بود
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آن ارتباط آب و خاك ، از نظم آن يزدان بُوَد
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رفاقت را چنان بنما ،كه از دستـت نرنجد كس
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فساد و كينه جويي است ، براي حكم راني است
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اي پسرا ، به هوش باش حرف خدا شنفتني است
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سفارش كرد پيغمبر ، براي امتـش يك سر
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درخت بارور باشـد هـدف بر ضربه ي سنگ اسـت
درخـ
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اين نسـل نـوزاد بشـر در كـار خـود حيـران بـُوَد
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خداونـد سخن گويـي ، سخـن گويد كه مي گويـم
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عشق جديد ، مستـي و بازيـگري بر آن هست
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در تاخت و تاز زندگي، آسوده كي بتوان نشست
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افراد حقـگو بـشنويد از مـا به حق پيمان كه نيست
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برحرف حق دشمن بُوَد،هركس به حق هوشيارنيست
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كمال وفضل اين ملت كه به نوشتن كتاب است
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اولاد بشر رأي تو اينجا به كي استي
گر ديو نباشي ، زِ نسل بشر استي
آدم ب
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خـداونـدا زِ رازت هـوشيـارم
كـه رازت مـي زنـد بر هـم قرارم
ز ك
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من زِ خـدا باغ جنـان خواستـم
خـود به ره طاعـتش آراستـم
گـر
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پيـرو دهقـان نـكوكار بـاش
بـذر نـكويـي به زميـنت بپـاش
آب
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آن شعشعه ي نوري،كز رب غفور آمد
آن روشني نورش چون سيرت حورآمد
در وادي حيرتها ،هر
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يارب ره توكو كه در آن رو بِنَهم من
پا در ره دريايي و هر كو بنهم من
هرجا
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هر فرد اگركه حاكم ملك ما شود
از پايگاه حكم خدايي جدا شود
دراختلاف وكش
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غـرقيم و تشنه ايم ،به آب زلال تـو
برما خطر بُـوَد ، چه رسد بر ملال تـو
از
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دردا هـزار بُـوَد ، در ولاي تـو
بر آنكه سر نهد،به همان خاك پاي تـو
ما
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خوشا هر كس كه كار پُـر دغل كرد
كه سود كار خود را ،خود بغل كرد
زِ كار حيلـه
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هـر كه به دنيـاي دنـي ، بنـد شـد
هـر چـه بـپوييـد علايقمنـد شـد
هر
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دلـم از گردش چرخ تو تنگ است
زِ ظلمش چهره من زرد رنگ است
نه بر من ، هر
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آدم اگـر در پـي عيـاري است
حيلـه و تـزوير و دغلكاري است
يا بـ
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كار همـه خـلق ، گـرفتاري است
درد بـدتر از همـه ، بـي كاري است
هـر كه گـ
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آدم دانـا دل نيكـو لـقب
كـي بُـوَد از مـردم ديـگر عقب
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واي بـر آن مردم مغـرور مست
غـره و مغرور و خوديت كه هست
كبـر خـودش
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آدم دينـدار ، كه بـد كار نيست
بر ضـرر جمعـي ، ديّـار نيست
آدم
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آدم نيكو سِـيـَر ، از قوم و خويـش
رو به هدايـت بِـبَرد ،خلق پيـش
هـ
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در يَـم توحيد ، گـر اسرار نيست
آنهمه اسـرار جهان ، كار كيست
گر تو ب
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روح من از، نور خـودت ساختيـش
زير فضـاي فـلك انداختيـش
روح بشـر
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در ره تـوحيـد، هـر آن كس دويـد
عاقبـت آن لطف خـدا ، را بديـد
مـزد كسـ
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تعالله ، از آن علم خـداونـد
زِ علم خود ، به ما آن مي دهـد پنـد
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مـرد حما يت كـند از دين خود
خـلـق بـَرَد در ره آيين خود
رو
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حرف پيامبـر ، زِ قل الـروح بـود
نكتـه گفتـار تـو مقصـود بـود
گف
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اگـر كار دولت عدالـت بُـوَد
صواب است ، ملت به راحت بُـوَد
اگـر
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به بُـعد ناملايـم هـا ، مـزن سنـگ
بـترس از گـردش، اين چـرخ نيرنگ
به آدم
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بـو به مـشامـم برسـد ، زآن شميـم
رايـحه ات ، از دَم صبـح نسيـم
من ن
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ما ناطق احكام ، زِ گفتار خداييـم
از گفته شيطان صفتان، دور وجداييـم
بر ذكر
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طفيـل هستـي عشق تو هستـم
زِ عشقـت كي تهي مي بوده دستـم
مـرا دنيـ
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اين بذر محبت ،به من آمد كه بدانم
زين بذر محبت ،به جهانـش بنشانم
در رهگذرسيل
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گـر بـتوان ، كار نـكوتر كنيـم
طاعـت از آن ، حكمـت داور كنيـم
قابـل
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بيـا جانـا نصيحـت بشنـو از من
بـبند آن مهـر نيكويـان به دامـن
اگ
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غيـر تو كس نيسـت ، نـگهدار مـا
يا بـشناسـد همـه اسـرار مـا
مـا
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تـو كه گـردي زِ مژگانـم كني دور
چـرا چشم جهان بينـم ، كني كور
اگـر چشمـ
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ديـد دو چشمـت بُـوَد از كردگار
تا نـگرد قـدرت پـروردگار
گـر
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صحبـت دانـا دل سنجيـده كار
حل كنـد از بهـر بشـر نقص كار
هـر كه
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تربيـت دست تـو سـازد بشـر
تربيتـش گـر، به هـر خيـر و شـر
صنعت
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روشنـي حكمـت پـروردگار
در نظـر آدم شـب زنـده دار
آنكـه
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اي كـه بـر سـر نـهي ، تاج شاهـي
در نظـر دار ، لـطف الهـي
بـند
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خـدا غمخـوار من ، اول تـو بودي
چرا آخر غمـم بـر غم فـزودي
كجـا من
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اي تـو خدايـي ، كه بشـر ساختـي
جسـم بشـر نيـك بـپرداختـي
طرفـه
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خـداونـدا من آن رمـز تو ديـدم
به طبق خط رمـزت ، خط كشيـدم
خط رمـزي
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زِ دنيـا بسته شـد آب و گِـل من
چه شـد آن كار پوچ و باطل من
به دني
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عدالـت گـستري را گـر بـديدي
و يـا معنـاي عدلـش را شـنيـدي
بـر آن
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حمايـت بهـر عفّت مي كنـم من
رهـا خلقـي زِ خفّت مي كنـم من
اگـر خل
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كار جـهان گـر بُـوَد از كار تـو
تا قـصـص از مردم اشـرار تـو
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مـن به تولـي تـو دارم اميـد
گـر كه سياهـم به برت يا سفيـد
ه
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هر كه چو دهقان نكند كار كِـشت
حاصل از آن نيست كه سازد خورشت
ايـن مَـثَل ك
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خداونـدا ، تو را من مـي پرستـم
كجـا من تابـع خلق تو هستـم
همين
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نصيحـت مـي دهم ، من دو صـد بار
كه روي خود ، به سوي خـدا آر
مال دنيـا ،
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بر حكمـت اسـرار خـداوند بـپوييـد
تا از اثر حكمـت حق راه بـجوييـد
گرحكمت ح
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من كـه پذيرفتـه ام اين دين تـو
پيـرو امـر تـو و آييـن تـو
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هـر كه نمايـد بَـرِ حقـش سـجود
حق به رويـش يك در رحمت گشـود
سجـده بر حق
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تا بر قرار صبر و تحمّل نمي رسي
بر پايگاه حق تو نداري ، دست رسي
صبر و قرا
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هـر كه بَـرِ حق نـكند بندگـي
تنـگ كنـد بهـر خودش زندگـي
عاقبت
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كِلـك تو آموخت به من بندگـي
از ره دانايـي و سـر زندگـي
قهـر
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رفيقـا گـر بـيايـد خـرده سنگي
خدايـت را تـو ياد آور به رنگي
نـشا
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آدم نيكـو به ره همّـت است
همـره وجـدان و سـر غيـرت است
غيـرت و
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گياه از آب باران كرده رويـش
نه از هر شوره زار و خاك و شورش
اگـر بار
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اي قادر سبحاني ، اي حيّ و توانـا
همسايگـي ام را بنمــا ملت دانــا
چون
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