چهارشنبه ۵ دی
اشعار دفتر شعرِ شاعرانههای جهانبین شاعر نیره جهان بین
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دلتنگترین ترانهی بارانم
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همیشه از ته این انتظار میترسم
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جنس فریاد مرا حنجرهها میفهمند
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بیهوده نخور غصهی تنهایی را
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سکانسهایی از یک زندگی بهتر
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وقتش رسیده کهنه شود ماجرای من
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در ادامهی این کودتای پر افت و خیز
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مثل ساحل...
که به آسودگی عادت دارد
لم بده
از لب دریا تا کوه
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وقتی که پدر برای نان درد کشید
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چشمهایت که در این عشق صبورم کردند
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گاه در خلوت غمگین دلم
یاد تو همچو نسیمی جانبخش
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این عشق فقط هبوط را معنا کرد
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تو اگر بودی مرا غصهی بسیار چرا
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"آمدی جانم بقربانت" ولیکن دیر شد
"بیوفا" رویای من با رفتنت تعبیر شد
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مجنونتر از آناست که لیلی بشناسد
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کسی جز من نمیخواند نوای بینوایی را
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مانند پری در اُفت و خیز بادم
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دوباره عطر تو آمد ز خرمن موها
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گناهم را نمیدانم ولیکن خوب میدانم
سر آزردنم دارد کسی که دوستش دارم
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برای من تنها یک چراغ کافی بود
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مثل آن روستای خالی از سکنهی...
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وقتی لبها در حال بافتنند...
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هرچه من نزدیکتر یار از نگاهم دورتر
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رو سوی جنوب میکنم میدانم
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مغرور به اسب خود دواندن بودی
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خستهام از خودم و از همهی آنچه که هست
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عمریست که در فاصلهها گم شدهام
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