جمعه ۳۰ آذر
اشعار دفتر شعرِ نبض لطیف عاطفه شاعر حوریه (دلشید) اسماعیل تبار
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زنگارفام
در من چمیده ای
ای رَستَنای دوور...
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عشق را باید
قطره قطره
از پیاله ی شورآفرینِ چشمانت نوش�
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کفترِ غم زِ دلِ ملتهبم می خورَد آب
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بی تو
جوانه می زنند
پرهای بالشم
تا صبح.....
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تو
بذر دلشوره بکار،
من.....
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سوالِ بی جوابِ شورِ بی پایانِ دلشیدی
که با رقصِ دلم حلِ معما می کنم هرشب
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شکوه ِ لحظه هایم باش
نه شِکوِه ی آن..
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شور بهارانه ی دستان ِ بی رریغ
سوز ِ زمستانه و دلسرد می شود
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گمگشته ام میان ِ غبار ِ غلیظ ِ درک
وقتی به روی آینه ، هائی ز ِ لک کشید..
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میان ِ بازوان ِ "تو" ،
امنیتی هست
که
ترس را زیبا می کند..
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هم گریزانم ز خود ، هم سر به دامانم چو شمع
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چه شوری می زند قلبم که شیرین می شوی هر دَم
توئی درمانگر
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در طوفان ِ روزگار ،
ناخدائی باخدا که باشی ،
فاتحی....
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بسته ام سکٌان مِهرم بر نماز کوکبت
در زوال مغربم ، فانوس
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تاب می خورم
آویخته بر پرند ِ صبح آرزوها
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لب سوزترین واژه ی حیرانی ام امشب
تبدارترین هاله ی نورانی ام امشب.....
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داده ام وعده دلم را چو ببینم رویش
بگذارم دو لبم بر وتر ِ ابرویش...
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به شکیبائی ِ پروانه ی در پیله ی خویش...
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دستی که می پیچید گل بر ساقه ی دل
سائیده سنگ ِ بی کسی بر پایه هایم
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حسرت ِ عشق ِ تو مرا پیر کرد
مرغ ِ دلم را هدف ِ تیر کرد....
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آرام آرام ،
نا آرامت می شوم...
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سینه تنگ ست..
کمی فراخ تر کن حضورت را..
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فانوسی در دست..
چشم ها بسته..
اعتمادم به قلب..
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آن که شال ِ نگهَش پیچش ِ سرمایم بود
بسته پلک ِ نفسَش ، تیره و بی نور شده
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مطلع غزل دردهایم
مویه های شبانه ام
راضی باش..
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عادت شده دل بستن و بشکستن و تکرار
وقت ست کمی با صنم ِ عشق بسازم..
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خدا مرا به فِراق ِ تو مبتلا نکند
من و ندیدن ِ روی ِ تورا..خدا نکند
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قافیه خائن دستهایت را ، ردیفم نکن..
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عکس ِ تو ، بر عکس ِ تو ، دائم در آغوش ِ من است
حرفِ تو ، مانند ِگل ، آویزه ی ِ گوش ِ من است
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در نهانَم بی صدا گریان و لرزانم چو بید
می دَرَد غم پیکر
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بر تن عریانِ گیسو دستِ مرهم می کِشی
گوئی بر جغرافیایم رسمِ مبهم می کِشی
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