يکشنبه ۴ آذر
اشعار دفتر شعرِ بُت چینی شاعر افسانه نجفی
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امشب از مستی هوس
دست درازی می کند خیال...
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برو ای عشق
من از مردم گریزانم!!!
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در آستانه ی سقوطم
از پست ترین جای جهان
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یکی خبر بَرد
به قابله ی بی غم ِ خشم...
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آخ چقدر خسته ام!!!
یکی بیاید زمین را ز روی شانه های من بردارد
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امشب نه میل پیاله دارم
نه ذوق نماز...
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_آی سرباز!!!
بگو مرزها به کار که آمدند؟!
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در شهر دو چشمانش
یکی کمین کرده
با کینه ای نامعلوم...
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عشق ناخلف!!!
پشت پایش همیشه خیر است...
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دست قصاب تقدیر
بر گلوی دراز ترازو
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راست می گفت!
کینه را باید کفن کرد...
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شوخی تلخشان
خراشید صورت احساسم را
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ایستادهاند
بر بالای سرم عزرائیل زادگان
بر مزارم گلاب می ریزند...
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خیال دوست
خنجر می زند بر شاهرگ احساس...
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آی دخت زیبای اردیبهشت
بگو خنده هایت را چند فروختی؟!
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وضو گرفته و نشسته ام
رخ به رخ عشق...
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غم خورده
تن غصه ها را...
زانو بریده بغض
در گلوی راه
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قرارمان نشود؟!
دنج همان "خانه ی دلتنگی"
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منم افسانه ای سرکش
بیا با وعده خامم کن!
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تو را شکستم؛
جهانم
رنگارنگ شد...
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مرض قند دارم و هر دم
هوس می کنم
شیرینی لب های تو را
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"مستی"
به دادم برس!
بغض
نفس را سوخت...
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کاش تاوان "گناه"
لب های تو باشد
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گفت از سرم افتاده ای
باید کنی خود چاره ای!!!
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امشب پهن کرده ام
سجاده ی بغضم را...
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می شکند
در گلوی شهر
بغض پوسیده ی شب!
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می درّاند نور
پرده ی مخمل دو چشمانم را
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