جمعه ۲ آذر
اشعار دفتر شعرِ پیله های سوخته شاعر درویش حسین ندری
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آسمان هم به بلندای تو ایمان دارد
یا علی گفته چنین ماه فروزان دارد
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علی مولا حسینی پیشه ام کن
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در گوش فلک زمزمه کردم بشرم
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دلا همدرد آبانی بمیرم
اسیر چنگ بورانی بمیرم
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دمی آهسته تر ویرانه ام کن
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دوستت دارم و دیوانه خطابم تو مکن
در گلستان خرد خُرد و خرابم تو مکن
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چرا هر شب رضا خانی تو در سر
که روحم می کشی از جسم بر در
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نا بلد بودم نگاهم مست آن یک جام بود
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نمی یابم در حصار تن
آزادی را
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دل از چنگال تاریکی رها نیست
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آن غزل واره ی چشمان تو دیوان من است
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پری رو ناز من شیرین زبونه
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نگاهت می سراید بی بهانه
به لبخندی بخوان بانو ترانه
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از خم این کوچه که رد می شوم
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امروز که خورشید گلی الوان است
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عقربه ها حوصله ام کم شده
باز غروبم گسل بم شده
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کی من از آواز چشمان تو دلگیرم قلم
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شوق چشمت شعر را آیاتی از اعجاز کرد
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رفته ای اما نمی دانم چرا
قلب من باور ندارد قصه را
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منم مغلوب این جولان رهایم کن
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سلطان عشق و ایمان در کوله ات چه داری
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دو بیتی را دوباره ناله کردم
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از هجرت فندک می سوزد
جگر سیگارم
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در این دوران که نامردی زرنگیست
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در آسمان بی ستاره ام هنوز
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به دوختن پیله ام عادت دارم
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نفس هایم غم انگیز
لحظه هایم غمناک
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می زنی بر کوه احساسم دوباره تیشه را
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ای سراسر لرز و تب حالم بپرس
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شوق دیدار تو از چشمم جدا نیست
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