چهارشنبه ۲۸ آذر
اشعار دفتر شعرِ تبلور عشق... شاعر محمد جواد شاه بنده
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دستان رباعی ام کمی کِش آمد
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من زمستان تر از توام اخوان
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اولین بار بود حس جنون
داشت حال مرا بهم می زد
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اینجا منم که از همه کس بی قرارتر
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هیچکس مانند من گمراه نیست..
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می شود حتی دل یک سنگ عاشق با نسیم
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چنان با شور می گریم که حتی تار میگرید
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آری تو خاک بر سر ایمان من بریز
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شهر را بویی شبیه بوی نیلوفر گرفت
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تن تو سهم تن خسته ی من نبود،،،،نبود؟؟
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از ماجرای کاغذ و خودکار می ترسم
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در مکتب عشاق ز برهان خبری نیست
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شب،گاه مات روی تو شد گاه مات من
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یک شب بیا به خانه ی من تا ببوسمت
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آب دارد کوزه اما من همیشه تشنه لب
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ماه من مهتاب را اینگونه دلواپس نکن
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شعری در ۳۲ مصرع به تریب حروف الفبا
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دل که میگیرد هوا بارانی است
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بوسیدن پیراهنت را دوست دارم...
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چشم یعقوب ولی در پی نور است هنوز.
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یوسف شعر من از چاه رها گشت ولی...
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تشنهام،،حال مرا هرگز نمی فهمد سراب
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باختم در بازی این بازی بیجا برو
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دلم را بسته بر مویش گره را باز کردم من
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آدم پریشان از شکستن های انسانی ست
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ماه هم محو تماشاست ،،،،خدا رحم کند
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از بس که ملیح است مَه چهره نمایت
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من مسمان می شوم با روسری سر کردنت
علت کفر من است این حلقه های موی تو
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مَثَلی خواستم از طاق دو ابروت زنم
اخم کردی و همه ضرب و مثل ریخت به هم
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