پنجشنبه ۱۷ آبان
اشعار دفتر شعرِ غزلهای شیدایی شاعر واله مختاری
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من در هوای بودنت قدری تنفس کرده ام
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تمام می شود و می رود پی کارش!
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دل و عقل و دین و ایمان همه بر سرِ تبانی
تو ببین مرا سر آخر به کجا که می کشانی!
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من عاشقم،اما حکایت با تو دارم!
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مرا گاهی میان شعرهایم جستجویم کن
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من شعر و تو از یک غزلت نیست نشانی!
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دلی که مزه ی تلخ فراق را می داد!
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بهار آمده از سرم هوای غم برود
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پاییز دلم تنگ تر از تنگ می شود
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چه حاجتم به بیان است جناب آیینه!
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عاشق شدم به دو چشمت،دو سیب ممنوعه
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خط می کشم بر واژه ها،ذهنم مشوش
هی خط و هی خط،آخرش یک خط ممتد
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از سهم من فقط یک آه می ماند و بس!
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بیاد قهوه ی چشمش هنوز بیدارم
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بیا که مانده به راهت دو چشم خونبارم
بیا به غیر تو از هر که هست بیزارم
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من آدمِ تحریم و یک وضعیت بحرانی ام!
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پاییز قشنگ است اگر مال تو باشم!
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دچار می شوم به تو برای رفع چاره ها
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قدم بگذار بر چشمان من مولا
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حلقه ی زلف تو شد باعث ویرانی من
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برخیز طرحی نو در اندازیم
ما می توانیم،میتوان،آری!!
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دلم برای از تو نوشتن بهانه میگیرد
و شعر در همه جانم زبانه میگیرد!
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مدارا
جناب شعرهای من،کمی با من مدارا کن
بیا وجانِ من باش و مرا درخویش پیداکن
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