يکشنبه ۲ دی
اشعار دفتر شعرِ هجمههای خیال شاعر حسین ابراهیمی
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به بارانی که از چشمم بریزد
دلم نتْواند از رویت گریزد
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یار سیَه موی پری روی من
رد نشوی جز ز سر کوی من
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ای که به هر نگاهت رازی نهفته داری
بغض نهفتهی من، عشقِ به سینه جاری
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خستهام از زندان
خستهام از قفسی
که برای دل خود ساختهام
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راه قلبت را نمیدانم،
کسی را در دلم جا نیست
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ای قلمم،
بنویس از دلتنگیهایم
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تا وقتی کنارت نفس میکشم
تا وقتی کنارم نفس میکشی
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مثل دریا بیقرار و همچو کوهی باصلابت
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در من خدا چه دیده وقتی دمیده جانم؟
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آن موی پریشان تو آرامش جانم
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احوال دلم را، از موی سپیدم
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از تو خواهم نظری بر دل پُرخون بکنی
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میرسد پاییزم از راهی دراز
خستگی را میدهد رویَش به باد
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من آنم که چشمی به دنیا گشودم
که پیدا کنم نبض این زندگی را
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قلب من را یار مستم برد و آن لبخند او
روی ماهش بوده من را نور شبها تا سحر
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از غم عشقت دلم سوخته، دلدار من
میشود آیا شوی مونس و غمخوار من؟
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اگر مستم اگر شیدا، اگر عاشق اگر تنها
اگر بیخواب افکارم، اگر خسته از این دنیا
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بهارا سبز کن دنیای ما را
برانگیز آن نسیم آشنا را
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