يکشنبه ۲ دی
اشعار دفتر شعرِ غزل پاره شاعر مرضیه نوریخانی(آشنا)
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مادر همان شمعدانی پر گل زیباست
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آن درختم که هر چه تیشه بر ریشه ام کوفت تبر
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همچو دریا دم خور ساحل و او محرم اسرارت شود
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روزی دسته جارویی در حال کار
خورد به گران مبلی ماندگار
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شادی ام جمله نگاه تو شده است
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شب شکست وشتافت وشکافت شیشه ای
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افق به تماشا نشست امضای خدا را
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می بیند او را دل به هر منزل می رود
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روز گارم نمی گردد تا نگردم گرد یار
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تا بنده ببندد دری،تابنده شوی باز گشایی در دیگری
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شراره آتش می کشد دل ،تو چه آرام می آیی
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انتظار مرگیست جانکاه تر ازچوبه اعدام
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جانم مال تو،این سر من سر مولایم نبر
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شب چه شیرین در پیله ای به یاد لحظه لحظه عشق تو آرام آرمیده
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زخم بر دل میزنی تا بپرسی احوال ما آنگه که مرهم میزنی
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دوش آمدم چوهرشب از آن می باز بنوشم
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آرام، آرام جان من به کجا می بری ای دوست؟
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بیا چوآفتاب گردان ،چشم از آفتاب برنگیریم
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