سه شنبه ۴ دی
اشعار دفتر شعرِ پرنیان پاییز شاعر محسن ملک زاده(رهگذر)
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انجماد راکدی در سینه ام
طفل قلبم را به آغوش فشرد
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تا به ماهت، برکه را قدرت پروازی نیست
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تقدیم به اساتیدم و نابی های مهربان و عاشق
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تقدیم به هر آنکس که تلخ و شیرین عشق را می ستاید.
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قوی وحشی سپیدم کوچ کن با من شبی
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باد را می بوسی و دست مرا ول می کنی
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عشق با چشمان تو عمری تبانی کرده است
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کاش یارم امشبی با بوسه بیدارم کند
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دم شیطان دلم گرم که در چاه نبود
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فکر کن آیات بغض من چرا...
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فاعلان فاعلان فعولن
کوله بار''
چون گیسوان شب به زورقی
زلف بخت من درون آیینه
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تا چشم خورشید،تورا،بادل قدم زدم
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ای طنین پر ترنم،نای این حنجره باشی،کافی ست
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چهره ات...شعر سپیدی ست که...
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آمدی مرگ خدایت را ندیدی،رفتی
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نگاهت
تیر خلاصی ست
بر شقیقه افکارم...
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خزان عهد ما هم روزگاری...
دوام عمر می چیند ازین باغ
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پرسه بر غم زند این روح پراز درد ولی
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تاوان
یار در حجله و باران به سرم،وای مگو
فکر بعد تو به هر آن به سرم، وای مگو
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