پنجشنبه ۶ ارديبهشت
اشعار دفتر شعرِ شاعر
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درویشم و در تشویش, درخویش و پریشانم
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شاعری وامانده را مهمان بوران کرده ای
شاعر چشمان خود را غرق طوفان کرده ای
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دمی گرمی دمی سردی مزاجی دمدمی داری
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کوچه های شهر را آیینه بندان می کنم
شهر خاموش شبت را شعرباران می کنم
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غزل هوار می کشد،ترانه جار می زند
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هر هفت روز هفته ام آدینه شد بی تو
لعنت به عصر جمعه ی کشدار بعد از تو
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آری؛ دلم که هیچ؛ قلم بیقرار توست
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دوباره کودتای غصه های پنهانی
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چشمان تُرا وحشی وتاتارکشیدم
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ناگزیر از ماندن اما در گریز از بودنم
لعنتی:حال خرابم را ببین محض خدا
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شاعرِ خلوت گزینِ سادهٔ عزلت نشین
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قصهٔ کـوچِ مـرا در همه جا جــار زنید
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این هم غزلی نذر دوچشمان تو بانو
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دوباره شب شد و دلم،غزل بهانه می کند
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تگرگ بود و مرگ بود و برگ سبز دیگری
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دو نفس مانده مرا"مرد تو شد پیر"کجایی؟
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شعری که از آن خون نچکد یاوه سرایی ست
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کوچهٔ خاطره را شاعر مهتاب منم
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ترکِ رعنا قامتِ گیسو پریشان شب بخیر
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